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पाठ दूसरा
चार मंगल
चत्तारि मंगलं, अरहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं , केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं।
चत्तारि लोगुत्तमा, अरहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा।
चत्तारि सरणं पव्वज्जामि, अरहंते सरणं पव्वज्जामि, सिद्धे सरणं पव्वज्जामि, साहू सरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तं धम्म सरणं पव्वज्जामि।
लोक में चार मंगल हैं। अरहंत भगवान मंगल हैं, सिद्ध भगवान मंगल है, साधु (प्राचार्य, उपाध्याय और साधु) मंगल हैं तथा केवली भगवान द्वारा बताया गया वीतराग धर्म मंगल हैं।
जो मोह-राग-द्वेष रूपी पापों को गलावे ओर सच्चा सुख उत्पन्न करे, उसे मंगल कहते हैं। अरहंतादिक स्वयं मंगलमय है और उनमें भक्तिभाव होने से परम मंगल होता है।
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