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________________ भाध्यग्रंथ द्वारा विस्तृत व्याख्यान करनार भगवान् जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण सिधाय बीजं कोई ज नथी। एटले मारी ए दृढ मान्यता छ के-प्रस्तुत जीतकल्पभाष्यना प्रणेता भगवान् श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमण छ । भाष्यकार तरीके बे आचार्यों जाणीता छे । एक भगवान् श्रीसंघदासगणि क्षमाश्रमण अने बीना पूज्य श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । कल्पबृहद्भाष्य वगेरेना प्रणेता कोण छे ? ए निर्णीत नथी, पण ए आ बे करतां कोई त्रीजाज आचार्य छे एम अमे मानीए छीए । अस्तु, ए गमे ते हो, तो पण पूज्य श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रणनी महाभाष्यकार तरीकेनी ख्याति होई प्रस्तुत भाष्यमां तेमना पूर्व थई गएल भगवान् श्रीसंघदासगणि कृत भाष्यग्रन्थादिनी गाथाओ होवामां कोई पण प्रकारनो विरोध नथी। विषय-प्रस्तुत ग्रन्थमां जैन निन्थ-निर्ग्रन्थीओना जुदा जुदा अपराधस्थानविषयक प्रायश्चित्तोर्नु जोतव्यवहारने आश्री निरूपण करवामां आव्युं छे । जे विषयानुक्रमणिका जोवाथी स्पष्ट रोते जाणी शकाशे । अंतमा हुँ एटलं ज इच्छु छु के प्रस्तुत ग्रन्थना संशोधनमां सावधानी राखवा छतां स्खलनाओ रहेवा पामी होय तेने विद्वानी क्षमापूर्वक सुधारीने वांचे। निवेदक पुण्यविजय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008071
Book TitleAgam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman
AuthorPunyavijay
PublisherBabalchand Keshavlal Modi
Publication Year1994
Total Pages243
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Ethics
File Size15 MB
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