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ग्यत्वविचार
स्वोपज्ञभाष्ययुत
गाथा ण तस्स देंति पच्छित्त, बेन्ति अण्णत्थ सोहय ॥१४५॥ ण संभरति जो दोसे, सब्भावा ण य मायया । पचक्खी साहए ते उ, माइणो उ ण साहई ॥१४६॥ जति आगमो य आलोयणा य दोहि वि समं ण णिवइयाई। ण हु देति उ पच्छित्तं, आगमववहारिणो तस्स ॥१४७॥ जति आगमो य आलोयणा य दोहि वि समं णिवइताई।
दिति ततो पच्छित्तं, आगमववहारिणो तस्स ॥१४८॥ प्रायश्चित्त- को पुण पायच्छित्ते, दायव्वे अणरिहो व अरिहो वा ?। हातुर्योग्या
भण्णइ इणमो सुणसू, अरिहो जो वा अणरिहो उ ॥१४९॥ अट्ठारसहिं ठाणेहिं, जो होति परिणिटिओ। नऽलमत्थो तारिसो होति, ववहारं ववहरित्तए ॥१५०॥ अट्ठारसहि ठाणेहिं, जो होति सुपरिहितो । अलमत्थो तारिसो होति, ववहारं क्वहरित्तए ॥१५१॥ अट्ठारसहिं ठाणेहिं, जो होइ अपतिहितो। नऽलमत्थो तारिसो होति, ववहारं ववहरित्तए ॥१५२॥ अट्ठारसहिं ठाणेहिं, जो होति सुपतिहितो। अलमत्थो तारिसो होइ, ववहारं ववहरित्तए ॥१५३॥
क्यछक्क कायछकं, अकप्पो गिहिभायणं । स्थानानि
पलियंक गोयर णिसिज्ज ण्हाणे भूसा अट्ठार ठाणेते ॥१५४॥ परिणिट्ठियो परिणाया, पतिहितो जो ठिओ उ तेसु हवे । अविद् सोहि ण याणति, अठितो पुण अण्णहा कुज्जा ॥१५॥ बत्तीसाए तु ठाणेहिं, जो होइ परिणिहितो । णऽलमत्थो तारिसो होइ, क्वहारं ववहरित्तए ॥१५६॥
बत्तीसाए तु ठाणेहिं, जो होति परिणिहितो । १४५ गाथाचतुष्क व्य० उ० १० भा० गा० २३८-२४१ ॥ १५० इत आरभ्य सप्तविंशतिर्गाथा व्य० उ० १० भा० गा० २४२-२६८ ।।
अष्टादश
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