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प्राकृतिका
स्वोपज्ञभाध्ययुतं
[गाथा पणगे णिविगई तू , लहुमासे दाण होति पुरिमई। इत्तर चिरठविए या, समासतो लक्खणं वोच्छ ॥१२२०॥ संघाडग हिंडते, परिवाडिठिएसु तु गेहेसु । एक्को दोसुक्योग, करेति भिक्खाएँ गेहेमु ॥१२२१॥ बितिओ साणादीणं, देयुवओगं परे तहेक्कम्मि । तेण परेण चउत्थे, उक्खित्ता इत्तरहविया ॥१२२२॥ चतुथघरा तु परेणं, चिरठविया जाव पुवकोडी उ । एयं ठवियाऽभिहितं, एत्तो वोच्छामि पाहुडियं ॥१२२३॥ सा पाहुडिया दुविहा, मुहुमा तह बादरा य बोद्धव्वा । औसक्कण उस्सक्के, एक्केका सा भवे दुविहा ॥१२२४॥ मुहुमाए लहुपणगं, आवत्ती दाण होति णिविगतिं । चउगुरुग बायराए, आवत्ती दाणऽभत्तहँ ।।१२२५॥ एत्थं सुहुमा तु इमा, जह काइ अगारि कन्तमाणी उ। भणिया तु चेडरूवेण देहि अम्मो ! मह भत्तं ॥१२२६॥ भणितोहितो त्ति होही, जाया ! कन्तामि ता इमं पेलं । जइ तं सुणेति साहू, ण गच्छए तत्थ आरंभो ॥१२२७॥ अस्सुट्ठिया भणंती, तुज्झ मि देमि त्ति किंति परिहरति । किह दाणि ण उहिस्से ?, साहुपभावेण लब्भामो ॥१२२८॥ एवं णाऊण ततो, परिहरती एस होति ओसका। उस्सकण कन्तंती, भणिता चेडेण दे भत्तं ॥१२२९।। कन्तामि भणति पेलं, तो ते दाहामि पुत्त ! मा रोव । सा य समत्ता पेलू, देही एत्ताहे सो भणति ॥१२३०॥ मा ताव झंख पुत्तय !, परिवाडीए इहेहिही साहू । एयट्टमुहिता ते, दाहं सोउ विवज्जेति ॥१२३२॥ अंगुलिए चालेउं, कट्टति कप्पट्टतो घरं जत्तो। किन्ति ? कहिए ण वचति,पाहुडिया एअ सुहुमा उ ॥१२३२॥
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