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२०३. वरं वयतवेहि सग्गो, मा दुक्खं होउ णिरइ इयरेहिं।
छायातवट्ठियाणं, पडिवालंताण गुरुभेयं ।।१२।।
२०४. खयरामरमणुय-करंजलि-मालाहिं च संथुया विउला।
चक्कहररायलच्छी, लब्भई बोही ण भव्वणुओ॥१३॥
२०५. तत्थ ठिच्चा जहाठाणं, जक्खा आउक्खए चुया।
उवेन्ति माणुसं जोणिं, सेदुसंगेऽभिजायए।।१४।।
२०६-२०७.
भोच्चा भाणुस्सए भोए, अप्पडिरूवे अहाउयं। पुव्वं विसुद्धसद्धम्मे, केवलं बोहि बुज्झिया।।१५।। चउरंगं* दुल्लहं मत्ता, संजमं पडिवज्जिया। तवसा धुयकम्मंसे, सिद्धे हवइ सासए॥१६॥
समणसुत्त - भाग १
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