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________________ ११४. एए य संगे समइक्कमित्ता, सुदुत्तरा चेव भवंति सेसा। जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भवे अवि गंगासमाणा॥३३॥ ११५. जह सीलरक्खयाणं, पुरिसाणं प्रिंदिदाओ महिलाओ। तह सीलरक्खयाणं, महिलाणं प्रिंदिदा पुरिसा।। ३४।। ११६. किं पुण गुणसहिदाओ, इत्थीओ अत्थि वित्थडजसाओ। णरलोगदेवदाओ, देवेहिं वि वंदणिज्जाओ।॥ ३५॥ ११७. तेल्लोक्काडविडहणो, कामग्गी विसयरुक्खपज्जलिओ। जोव्वणतणिल्लचारी, जंण डहइ सो हवइ धण्णो ॥३६॥ ११८. जा जा वज्जई रयणी, न सा पडिनियत्तई। अहम्मं कुणमाणस्स अफला जन्ति राइओ॥३७ ।। ११९-१२०. जहा य तिण्णि वणिया, मूलं घेत्तूण निग्गया। एगोऽन्थ लहई लाहं, एगो मूलेण आगओ॥३८॥ एगो मूलं पि हारित्ता, आगओ तत्थ वाणिओ। ववहारे उवमा एसा, एवं धम्मे वियाणह ।।३९ ।। १२१. अप्पा जाणइ अप्पा, जहट्ठिओ अप्पसक्खिओ धम्मो। अप्पा करेइ तं तह, जह अप्पसुहावओ होइ।। ४० ।। १०. संयमसूत्र १२२. अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली। अप्पा कामदुहा धेणू, अप्पा मे नंदणं वणं॥१॥ समणसुत्त - भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008022
Book TitleSaman suttam Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages119
LanguagePrakrit, English
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size6 MB
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