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नरवइसेवणसंगामकरणपहाइं विविहवसणाई । मेहुणसमामिरया असइंपि लहंति वे पुरिसा ॥ १५ ॥ कामविवरंमुहा पुण नरमुरजणपूगणिज्जकमकमला । देहुभवमविणस्सरपरमाणंदं सह चिरंति ॥ १६ ॥ पडिपुण्णवंमपालणपवित्तगत्ताण पुरिससीहाण । सुभरणमेणं चिय विज्जा मंता य सियति ॥ १७ ॥ जे न परिग्गहविरई कुणंति पावेसु संपयट्टति । बंधति कोसियारोव्व अप्पयं ते सकिरियाए ॥ १८ ॥ पइदियहलाभवसवडमाणगुरुलाभदमियसरीरा। सव्वत्थ ममत्तपरिग्गहेण मुचिरं किलिस्संति ॥ १९ ॥ अपरिग्गहा उण नरा ससरीरेऽविहु ममत्तपदिबंध । न कुणंति वत्यपत्ताइएम सेसेस का गणणा ? ॥ २० ॥ एत्तो चिय विधयरोवसग्गवग्गेऽवि ते ण झाणामो। मंदरगिरिव विचलंति मोकखसोकखं च साहति ॥ २१ ॥ इय मो देवाणुपिया! अविरयविरयाणदोसगुणसहियं । कहियं तुम्हाण मए मुदं सद्धम्मसव्वस्सं ॥ २२ ॥ चिंतामणिब्द दुलह संसारमहोयहिमि भमिराणं । जीवाण नूण मेयं सकम्मगुरुमारपिहियाणं ॥ २३ ॥ एयमि उ संपत्ते तं न जए न पावियं होइ । ता एयंमि पयत्तो कायव्यो कुशलषुद्धीहि ॥ २४ ॥ एयं च निरइयारं न साहुदिकख विणा घडइ जम्हा । पडिवजह पव्वज्ज तम्हा दुहसलवन्जसमं ॥ २५ ॥
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