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________________ ८६२ विसेसचुण्णि [बंभावायपगयं सव्वपगारेहिं णिप्पकंपो सो सुद्धो । एतेसिं पच्छित्तगाहा । पढमस्स होइ मूलं, बितिए छेओ य छग्गुरुगमेव। छल्लहुगा चउगुरुगा, पंचमए छट्ठ सुद्धो उ ॥५७१०॥ "पढमस्स होइ मूलं०" गाहा । सव्वेहिं पगारेहिं, छंदणमादीहिँ छटुओ सुद्धो। तस्स वि न होइ गमणं, असमत्तसुए अदिन्ने य ॥५७११॥ "सव्वेहिं पगारेहिं०" गाहा । तस्स अणणुण्णाए न वदृति गंतुं । जेहिं णाहियासियं पढमबितियतइयचउत्थपंचमेहिं देवयाहिं भद्दियाहिं भणियं-अहो से पइन्ना निव्वाहिया । तज्जिया णिग्गया णं दिट्ठा भे अवत्था । एतं मए कयं । मा भे पंता देवया छलेज्जा तो वच्चह गच्छं। एए अण्णे य बहू, दोसा अविदिण्णनिग्गमे भणिया । मुच्चइ गणममुयंतो, तेहिं लभते गुणा चेमे ॥५७१२॥ "एते अण्णे य०" गाहा । य एते उक्ता अविदिन्नं निग्गमे दोसा । एएहिं दोसाणं मुच्चए । जो गच्छे वसते इमे य ते गुणा भवंति । नाणस्स होइ भागी, थिरयरओ दंसणे चरित्ते य । धन्ना गुरुकुलवासं, आवकहाए न मुंचंति ॥५७१३॥ भीतावासो रई धम्मे, अणाययणवज्जणा । निग्गहो य कसायाणं, एयं धीराण सासणं ॥५७१४॥ जइमं साहुसंसग्गि, न विमोक्खसि मोक्खसि । उज्जतो व तवे निच्चं, न होहिसि न होहिसि ॥५७१५॥ सच्छंदवत्तिया जेहिं, सग्गुणेहिं जढा जढा । अप्पणो ते परेसिं च, निच्चं सुविहिया हिया ॥५७१६॥ "नाणस्स होइ भागी०" ["भीतावासो रई०" "जइमं साहुसंसग्गि०" संच्छंदवत्तिया०"] गाहाओ । सिलोगा य कण्ठ्या । मोक्खसि संसारातो न होहिसि अव्वाबाधसुही । सच्छंदवत्तिया नाम सच्छंदसीलया, सच्छंदवृत्तित्वम् । सग्गुणेहिं जेहिं जहा जे संसारदुक्खेहिं जहा जे सुविहिया तेहिं छज्जीवणिकायाणं हितं कयं भवति ।
SR No.007788
Book TitleKappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 03
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size6 MB
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