SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०२६ कप्पसुयस्स सद्दकोसो १/४७ वागरण (व्याकरण) ३/२३,२४ विभत्त (विभक्त) २/२३ वाय (वाद) ६/२ विभावित्तए (विभावयितुम्)३/२३ वावड (व्याप्त) ३/३१ वियड (विकट,विकृत) २/५ वासावास (वर्षावास) १/३५, २/३, १०, . वियडगिह (विकटगृह) २/११,१२ ४/२६, ३३/३४, वियर (वि + तृ)- वियरेज्जा४/१६ वियारभूमि (विचारभूमि) १/३९, ४१, ४५, वाहिय (व्याधित) ३/२२ ४६, ४/१६ वि (अपि) १/३७ वियाल (विकाल) १/४२ से ४६, विइकिण्ण (व्यतिकीर्ण) २/१,२,८,९ ५/२५, ५/१०, विउट्ट (वि + कुट्ट) १३, १४ विउट्टेज्जा ४/२६ विलिंपित्तए (विलेपयितुम्) ५/३८ विउवित्ता (विकृत्य) ५/१ विसम (विषम) विओसवित्ता (व्यवशाम्य) १/३४ विसय (विषय) विओसविय (व्यवशमित) ६/१ विसोह (वि + शोधय)विओसवियपाहुड विसोहेज्जा ४/२६ (व्यवशमितप्राभृत) १/३४, ४/७ विसोहण (विशोधन) ४/२७ विक्खिण्ण (विकीर्ण) २/१,२,८,९ विसोहिया (विशोध्य) ५/११ विगइपडिबद्ध विसोहेत्तए (विशोधयितुम्) ५/११ (विकृतिप्रतिबद्ध) ४/६,७ विसोहेमाण (विशोधयत्) ५/६ से १०, १३, विगिचण (विवेचन) ४/२७ १४, ६/३ से ६ विगिंचमाण (विविञ्चत्) ५/६ से १०,१३,१४ विहर (वि + हृ)- विहरइ ३/१३ विगिंचित्तए (विवेक्तुम्) ५/११ विहरित्तए (विहर्तुम्) ४/१६ विणीय (विनीत) ४/७ विहारभूमि (विहारभूमि) १/३९ वितिगिच्छा (विचिकित्सा)५/७,९ विहिभिन्न (विधिभिन्न) १/५ विप्पइण्ण (विप्रकीर्ण) ९ वीरासणिय (वीरासनिक) ५/२३ विप्पकिण्ण (विप्रकीर्ण) २/१,२,८ वीसुंभ (दे.)- वीसुंभेज्जा ४/२५ विप्पजहा (वि + प्र + हा) वीहि (व्रीहि) विप्पजहंति ३/२८ वुग्गाहिय (व्युद्ग्राहित) ४/८ विप्पणस (वि+प्र + नश्) वेंटय (वृन्तक) ५/३० से ३३ विप्पणसेज्जा ३/२७ वेयावच्चकर २/१
SR No.007788
Book TitleKappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 03
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy