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________________ बुद्धिसागरः (अर्थः) शरीर के बिना आत्मा को सुख-दुःख का अनुभव नही होता, इसलिए उसकी उत्पत्ति के बारे में अब मैं संक्षेप से कहूँगा। मूल] कर्मणा प्रेरितो जीवः शुक्रशोणितयोगतः। ऋतौ गर्भाशये प्राप्तो गर्भ: सम्पद्यते तदा॥२७१॥(४.६) (अन्वयः) कर्मणा प्रेरितः ऋतौ शुक्रशोणितयोगतः जीवः यदा गर्भाशये प्राप्तः तदा गर्भः सम्पद्यते। (अर्थः) कर्म की प्रेरणा से तथा ऋतुकाल में शुक्र और शोणित के योग से जीव जब गर्भाशय में प्राप्त होता है तब गर्भ बनता है। [मूल तत्क्षणे द्रवरूपः स्यात् सप्ताहात् कललं भवेत्। पक्षात्तद्बुद्बुदाकारं मासेन कठिनं भवेत्॥२७२॥(४.७) (अन्वयः) तत् क्षणे (गर्भः) द्रवरूपः स्यात् सप्ताहात् कललं भवेत्, पक्षात् तद् बुद्बुदाकारं मासेन कठिनं भवेत्। (अर्थः) उसी क्षण वह गर्भ द्रवरूप होता है, एक सप्ताह में भ्रूण होता है, पंद्रह दिन में बुद्दाकार होता है, एक मास में कठिन बनता है। [मल] पेशी मासे द्वितीये स्यादत्पद्यन्ते ततः परम्। शिरो भुजो च पादौ च तृतीयेऽङ्गानि पञ्च वै॥२७३॥(४.८) (अन्वयः) द्वितीये मासे पेशी स्याद्, ततः परं तृतीये शिरो भुजौ पादौ च वै पञ्च अङ्गानि उत्पद्यन्ते। (अर्थः) दूसरे माह में पेशी उत्पन्न होती हैं, उसके बाद सिर, दो भुजा, दो पैर ये पाँच अङ्ग उत्पन्न होते हैं। [मूल] सर्वाङ्गव्यक्तता तुर्ये मासि सञ्जायते ततः। पञ्चमे मासि चैतन्यं षष्ठे रोमादिकं तथा॥२७४॥(४.९) (अन्वयः) तुर्ये मासि सर्वाङ्गव्यक्तता सञ्जायते, ततः पञ्चमे मासि चैतन्यं तथा षष्ठे रोमादिकम् (सञ्जायते)। (अर्थः) चौथे माह में सभी अंगों की व्यक्तता होती हैं, पांचवें माह में चैतन्य तथा छठे मास में रोमादि उत्पन्न होते हैं। [मूल] सर्वाङ्गपरिपूर्णोऽयं सप्तमे मासि वर्धते। संवस त्यष्टमे मासि त्वस्मिन्नोजस्तथाविधे॥२७५॥(४.१०) (अन्वयः) सर्वाङ्गपरिपूर्णोऽयं सप्तमे मासि वर्धते, अष्टमे मासि तथाविधे अस्मिन्नोजस्तु सञ्चरति। (अर्थः) सभी अंगों से परिपूर्ण यह(गर्भ) सातवे माह मे बढता है, आंठवें माह में थोडी-थोडी हलचल करता है तथा इसी माह में उस में ओज का संचार होता है। [मूल| चापल्यादोजसस्तस्मिन् जातः पुत्रो न जीवति। नवमे मासि गर्भोऽयं प्रसूत्यै स्यादधोमुखः॥२७६॥(४.११) १. सञ्चर मु.
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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