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________________ बुद्धिसागरः (अन्वयः) यस्य च अखिलपरस्त्रीसोदरस्य रत्नालङ्कृतिसोज्ज्वला गौरवगुणैः अपरा विश्वम्भरा इव शृङ्गारादिरसेन कान्तसुभगा प्रिया गौरा भाति (तस्य) सङ्ग्रामसिंहस्य प्रोक्ते बुद्धिसुधाम्बुधौ व्यवहृतेः तृतीयः उर्मिः अभवत्। परस्त्री के भाइ समान जिसकी रत्न और अलङ्कार से उज्ज्वल, गौरवगुण से दूसरी पृथ्वी के समान, शृङ्गारादि रसों से कान्त और सुभग गौरा नामक पत्नी है उस सङ्ग्रामसिंह विरचित बुद्धिसागर ग्रंथ में व्यवहार नामक तीसरा तरंग पूर्ण हुआ।। (अर्थः) ॥इति श्रीसङ्ग्रामसिंहविरचिते बुद्धिसागरे व्यवहारतरङ्गस्तृतीयः॥
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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