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________________ मुहम्मद तुघलक को छोडकर दिल्ली के सभी शासक कट्टर सुन्नी पंथ के थे। धार्मिक दृष्टि से यह बडे ही असहिष्णु थे। उन्होंने कोई हिंदु और जैन मंदिरों को नहीं छोडा, न मूर्तियों को छोडा। फिर भी भारत की अस्मिता का अस्तित्व बना रहा। जैन धर्मावलंबी अपने धर्म की आस्थामें अडिग साबित हुए। विपरीत परिस्थितियों में भी वे सम्मान और अनुकूल राजाज्ञा (फरमान) प्राप्त करने में सफल रहे। शिखरबद्ध मंदिर के विनाश होने पर भी उन्होंने गृहचैत्य बना करके प्रतिमा पूजा का प्रचलन चालु रखा। गुजरात सल्तनत गुजरात भारत के पश्चिम समुद्र किनारे पर है। पुरातनकाल से वह जैन धर्म का मुख्य केंद्र बना रहा। ईसा की तेरहवी शती के पूर्वार्ध में गुजरात को वस्तुपाल और तेजपाल जैसे श्रेष्ठी, और संघपति मीले। इस समय में गुजरात का विदेश के साथ व्यापारिक संबंध था। अतः जैन श्रेष्ठि धनिक थे। जामनगर, पोरबंदर, धोलेरा, ओखा, घोघा, भरुच, सुरत, गंधार जैसे बंदरो से विदेश व्यापार होता था। अतः जैन श्रेष्ठिओं ने मंदिरों का ध्वंस हो जाने के बाद भी उनका पुनर्निर्माण किया, नये मंदिर बने, सहस्रशः मूर्तियां बनी। नये साहित्य का सृजन हुआ, शास्त्रों का पुनर्लेखन हुआ। महम्मद गझनी(गजनवी) ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया तब से गुजरात मुस्लीम आक्रांताओं का शिकार बनता रहा फिर भी गुजरात में तेरहवी शताब्दी के अंत तक हिंदु साम्राज्य अखंड रहा। सन् १२९७ में अल्लाउद्दीन खीलजी ने गुजरात को दिल्ली सल्तनत के अधीन किया तब से गुजरात में दिल्ली सल्तनत द्वारा नियुक्त सुबेदारों का शासन रहा। गुजरात में अंतिम सुबेदार जाफर खां सन् १३९१ में नियुक्त हुआ। वस्तुतः वह स्वतंत्र शासक की तरह ही राज्य करता था फिर भी कानूनी तौर पर उसने सन् १४०१ में दिल्ली सल्तनत का त्याग कर अपने पुत्र ततर खां को नसीरुद्दीन महम्मद शाह नाम देकर गुजरात का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया। इतिहास यह गवाह देता है कि सन् १४०७ में जाफरखां ने स्वयं अपने पुत्र को जहर देकर मार डाला और स्वयं सुलतान महम्मद शाह नाम धारण कर लिया। अंततः उसके पुत्र अलप खां ने उसको जहर देकर उसी तरह मार दिया। अलप खां ने अहमदशाह नाम रखा और गुजरात का शासक बना। गुजरात के सुलतानो में अहमद शाह, महम्मद बेगडा, बहादुर शाह प्रसिद्ध हुए। इन्होंने सन् १४११ से लेकर सन् १५७२ तक गुजरात पर शासन किया। तत्पश्चात् गुजरात मुघल साम्रज्य का हिस्सा बन गया। ___ गुजरात के शासको ने भी हिंदू और जैन धर्मावलंबियों पर अत्याचार किये। उनके धार्मिक स्थल तोड दिये गये। फिर भी गुजरात में जैन धर्म का प्रसार अक्षुण्ण रहा। उसकी वजह श्रीमंत और प्रभाववंत जैन श्रेष्ठी थे। जैन श्रेष्ठिओं ने गुजरात के शासक और दिल्ली के सुबेदारों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाये। जैनाचार्यों ने भी इस कार्य में बहोत प्रदान किया। गुजरात में जैनधर्म के अस्तित्व को सुरक्षित रखने में जिनका महत्तम प्रदान है वैसे कुछ एक श्रेष्ठियों के नाम को जानना प्रस्तुत होगा। इन श्रेष्ठियों के नाम एवं प्रदान के विषय में जैन ग्रंथों में उल्लेख प्राप्त होते है। कुछ एक संदर्भ इस प्रकार है। आ.श्रीजिनप्रभसूरि कृत 'विविधतीर्थकल्प', आ.श्रीकनकसूरिकृत 'नाभिनन्दनोद्धारप्रबन्ध', 'खरतरगच्छबृहदुर्वावली', विद्यातिलकसूरिकृत 'कन्यान्वय महावीर कल्प परिशेष',
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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