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परास्त करने में बहमनी साम्राज्य सफल हुआ था। ई.स. १५२६ में बाबर ने भारत पर हमला किया। उसके साथ ही मुगल साम्राज्य का प्रारंभ हुआ। दिल्ली और आगरा सत्ता के मुख्य केंद्र बनें। बाबर के पश्चात् उसका पुत्र हुमायूं (१५३० से १५४०, १५५५ से १५५६) अकबर (२७.१.१५५६ से २९.१०.१६०५) जहांगीर (१५.१०.१६०५ से ८.११.१६२७) शहाजहां (१९.१.१६२८ से ३१.७.१६५८) और औरंगजेब (१६५८ से १७०७) शासक बने। औरंगजेब के पश्चात् मुगल साम्राज्य का अस्त हुआ। परिस्थिति का फायदा उठाकर बहुत सारे क्षत्रप(शासक) स्वतंत्र हो गये। इसको अंतिम परिणाम स्वरूप ब्रिटीश हकुमत को भारत में सत्ता हासिल करने का मौका मिला।
यह मध्यकाल के इतिहास का सामान्य सर्वेक्षण है। यह कालखंड के इतिहास को एक या दूसरी तरह से जैन धर्मावलंबियोंने तथा जैन नेतृत्व के राजकीय संबंधों ने प्रभावित किया था। इस विषय पर कुछ विस्तृत विवरण प्रस्तुत है। जैनधर्म बनाम दिल्ली सल्तनत। __ लोदी वंश (१४५१ से १५२६) के राज्यकाल दौरान दिल्ली के सभी शासक तुर्कवंश के थे। वे इस्लाम के कट्टर अनुयायी थे और हिंदु और जैनियों के प्रति असहिष्णू थे। उनके अनुसार हर एक भारतीय काफिर था। अपने धार्मिक राजकीय और सामरिक हेतु को सिद्ध करने के लिये वे गैर-मुस्लिम का वध करने से और गैरमुस्लिम की संपत्ति को लूटने में हिचकिचाते नहीं थे। वे पूरी तरह से मूर्ति के विरोधी थे। जैन और हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करना, मूर्तियों को तोडना, देवधन को लूटना, हिंदू और जैन व्यापारीओं की संपत्ति को लूटना उनकी धार्मिक फर्ज का एक भाग था। यह विदेशी शासक हिंदू और जैन धर्मावलंबियों को अपने पवित्र धार्मिक स्थल बनाने की अनुमति नहीं देते थे। उनके संकुचित उलेमोओं के द्वारा दिये गये जड आदेश ही उनके लिये अंतिम शब्द थे। उनका पूरा लक्ष्य भारत को इस्लाम में परावर्तित करने का था। जो मुस्लीम होना स्वीकार नहीं करते थे उन के उपर बडा और भारी कर डाला जाता था और अन्य सैंकडो तरीकों से परेशान किया जाता था।
ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी जैन धर्मावलंबी निराश नही हुए। जैन प्रजा मधुरभाषी, विनयी, अनुवर्तनशील और बुद्धिशाली थी। अतः इन स्वार्थपरस्त और असहिष्णु शासक के द्वारा प्रारब्ध विनाश को कुछ हद तक रोकने में सफल हुई। ____ दिल्ली की हर एक सल्तनत के समय में जैनधर्मावलंबियों का निरंतर अखंड संबंध रहा था। इस के ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध है। शाहबुद्दीन महम्मद घोरी पर जैनाचार्य श्रीवसंतकीर्ति का प्रभाव था। जैन शास्त्रों में उस समय दिल्ली 'योगिनीपुर' नाम से प्रसिद्ध था। यहां पर बडे श्रीमंत परिवार रहते थे जिसमें अधिकांश ओसवाल वंश के थे।
उसी तरह अल्लाउद्दीन खिलजी (१२९६ से १३१६) जैसा असहिष्णु शासक भी दिगंबर मुनि श्रुतवीरस्वामीजी और श्वेतांबर आचार्य श्रीजिनचंद्रसूरिजी, यति श्रीरामचंद्रजी को समान सम्मान देता था।