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________________ (१०) क्रमांक ५ वि.सं. १९५९ कार्तिक वद ४ के दिन जयनारायण ने लिखी है। हस्तप्रत क्रमांक ३ लयाराम धनजी ने लिखी है। हस्तप्रत क्रमांक ५ में लेखन प्रशस्ति से पूर्व लया ऐसे अक्षर दिखते है अतः यह अनुमान हो सकता है कि यह हस्तप्रत, हस्तप्रत क्रमांक ३ की प्रतिकृति है। इस अवलोकन से यह नतीजा नीकलता है कि हस्तप्रत क्रमांक २, ३, ४, ५, ७, और ८ एक कुल की है। हस्तप्रत क्रमांक १ और ६ एक कुल की है। हस्तप्रत क्रमांक १ और ६ का कुल प्राचीन है। उपयुक्त आठ हस्तप्रत में हस्तप्रत क्रमांक १, २, ३ और ४ संशोधित है। हस्तप्रत क्रमांक ३ में लेखकने नहीं समज में आने वाले पाठ की जगह खाली रखी है। हस्तप्रत क्रमांक २ में कीसी वाचकने पेन्सील से कठिन शब्द के अर्थ लिखे है। समीक्षात्मक संपादन भारत की समृद्ध ज्ञानपरंपरा में असंख्य हस्तप्रत लिखी गई है। इन हस्तप्रतों का रक्षण, देखभाल और उस पर अध्ययन करने के लिए हस्तलिखितशास्त्र का उदय हुआ। किसी भी हस्तलिखित का सर्वमान्य पाठ निश्चित करना यह हस्तलिखितशास्त्र के क्षेत्र में आता है। इसी को चिकित्सक संपादन कहते है। एक ही ग्रंथ की अनेक क्षेत्र में अलग-अलग समय में लिखी हुई अनेक हस्तप्रत होती है। परंतु सर्व हस्तलिखितों में समान ही पाठ(Text) रहता है ऐसा नहीं है। विविध कारणों से मूल ग्रंथ में अनेक अशुद्धि, प्रक्षेपक भाग मिलता है। इसी कारण मूलपाठ निर्धारण यह हस्तलिखितशास्त्र का महत्त्व का अंग है। इसी को हस्तलिखितशास्त्र में चिकित्सक संपादन या समीक्षात्मक संपादन कहते है। चिकित्सक संपादन की व्याख्या इस प्रकार है Textual Criticism is methodical exercise of human intellect on the settlement of texts. ___ मानवीय बुद्धि के द्वारा किसी भी ग्रंथ का पाठनिर्धारण के लिए विशिष्ट शास्त्रीय पद्धति के द्वारा किया गया प्रयत्न पाठसंपादन है ऐसा कहते है। संपादन की पद्धति उपलब्ध हस्तप्रत के आधार पर चिकित्सक संपादन करते समय सारग्राही संपादन पद्धति का उपयोग किया गया है। प्रस्तुत संपादन प्रधानतया हस्तप्रत क्रमांक १ और २ के आधार पर किया है। प्राचीन कुल की हस्तप्रत के पाठ को प्रधान गिना है। पाठ संशोधन हेतु हस्तप्रत क्रमांक ३ और ४ का आधार लिया है। अन्य हस्तप्रत नवीन एवं अनुकरणात्मक है अतः आवश्यकतानुसार उनका उपयोग किया है। पूज्य आचार्य श्रीआनंदसागरसूरीश्वरजी म.का मुद्रित संपादन हस्तप्रत क्रमांक १ अथवा ६ के आधार पर हुआ है ऐसा लगता है। नवीन कुल की प्रत में कुछ एक पाठ छूट गया है। (द्रष्टव्य श्लोक—१७७(२.९०), १९४(२.१०७), २०४ (३.१०), २१८(३.२४), २२२ (३.२८), २२३ (३.२९), २२५(३ ३१) इत्यादि ) हमने हस्तप्रत क्रमांक १ (भां२९६) का पाठ आधारभूत माना है।
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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