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________________ क्षमापणा प्रेरक उद्धरण खामेमी सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्व भूएसु. वेरं मज्ज्ञ न केणई। धर्म के बिना विज्ञान लंगडा है, विज्ञान के बिना धर्म अंधा है। आइंस्टीन शिवमस्तु सर्वजगतः पर-हित-निरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं. सर्वत्र सुखी भवतु लोकः। ..... जो व्यक्ति धार्मिकितः प्रतिबुद्ध है, वह मुझे ऐसा लगता है जैसे उसने, अपनी उत्तम योग्यतानुसार, अपनी स्वार्थपूर्ण इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर ली हो।.... आइंस्टीन उपसर्गाः क्षयं याँति, छिद्यंते विघ्न-वल्लयः । मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे। जैन : वह व्यक्ति जिसने अपने अंतरंग शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली हो। सर्व मंगल माँगल्यं, सर्व कल्याण कारणम् । प्रधानं सर्व धर्माणांए जैन जयती शासनम् । जिन सांसारिक आशाओं पर मनुष्य ध्यान लगाता है, वे या तो उसे नष्ट कर देती हैं या फिर उसे प्रगति की ओर ले जाती है। पर हाय, यह ठीक वैसी ही हैं जो रेगिस्तान की रेतीली सतह पर चमकीला बर्फए कुछ समय रहता है और फिर पिघल कर नष्ट हो जाता है। उमर खय्याम जिनाः शान्ताः शांतिकराः भवन्तु स्वाहा। नमोअर्हतू. सिद्वाचार्योपाध्याय. सर्वसाधुम्यः । For Private & Personal Use Only www.yjf.org.uk 99 For Private & Personal Use Only www.yjf.org.uk 100
SR No.007783
Book TitleJain Thoughts And Prayers
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherYorkshire Jain Foundation
Publication Year2007
Total Pages52
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size7 MB
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