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________________ www.vitragvani.com 70] [ सम्यग्दर्शन : भाग-5 मुनिराज से धर्म का उपदेश सुनकर बहुत से जीवों ने व्रत धारण किये। हाथी को भी भावना जागृत हुई कि यदि मैं मनुष्य होता तो मैं भी उत्तम मुनिधर्म अंगीकार करता; इस प्रकार मुनिधर्म की भावनासहित उसने श्रावकधर्म अंगीकार किया। मुनिराज के चरणों में नमस्कार करके उसने पाँच अणुव्रत धारण किये..... वह श्रावक बना । सम्यग्दर्शन प्राप्त करके व्रतधारी हुआ वह व्रजघोष हाथी बारम्बार मस्तक झुकाकर अरविन्द मुनिराज को नमस्कार करने लगा, सूँड़ ऊँची-नीची करके उपकार मानने लगा। हाथी की ऐसी धर्म चेष्टायें देखकर श्रावक बहुत प्रसन्न हुए और जब मुनिराज ने प्रसिद्ध किया कि यह हाथी का जीव, आत्मा की उन्नति करते-करते भरतक्षेत्र में तेईसवाँ तीर्थंकर होगा तब तो सबके हर्ष का पार नहीं रहा; हाथी को धर्मात्मा जानकर बहुत प्रेम से श्रावक उसे निर्दोष आहार देने लगे। यात्रासंघ थोड़े समय उस वन में रुककर फिर सम्मेदशिखर की ओर रवाना हुआ; हाथी का जीव थोड़े भव पश्चात् इसी सम्मेदशिखर से मोक्ष प्राप्त करनेवाला है । उसकी यात्रा करने संघ जा रहा है । अरविन्द मुनिराज भी संघ के साथ विहार करने लगे, तब हाथी भी अत्यन्त विनयपूर्वक अपने गुरु को पहुँचाने के लिए थोड़े दूर तक पीछे-पीछे गया... अन्त में बारम्बार मुनिराज को नमस्कार करके गदगद भाव से अपने वन में वापस आया और चैतन्य की आराधनापूर्वक अपूर्व शान्तिमय जीवन जीने लगा। वाह! धन्य है उस हाथी को ... जो कि मोक्ष का आराधक बना । ● Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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