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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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अभी ही सम्यक्त्व को ग्रहण कर [ तत्गृहाण अद्य सम्यक्त्वं तत्लाभे काल एष ते ]
भगवान ऋषभदेव के जीव को भोगभूमि के अवतार में सम्यग्दर्शन-प्राप्ति का अद्भुत रोमांचकारी वर्णन।
भोगभूमि में आर्य दम्पतिरूप से उत्पन्न वज्रजंघ और श्रीमती एक बार कल्पवृक्ष की शोभा निहारते हुए बैठे थे। इतने में आकाश में निकल रहे सूर्यप्रभदेव का विमान देखकर उन दोनों को जातिस्मरण हो गया। जातिस्मरण द्वारा पूर्वभव जानकर वे वैराग्यपूर्वक संसार का स्वरूप विचार रहे थे; तब वहाँ तो वज्रजंघ के जीव ने आकाश में दूर से आ रहे दो मुनियों को देखा और वे मुनिवर भी उन पर अनुग्रह करके आकाशमार्ग से नीचे उतरे। उन्हें सन्मुख आते देखकर तुरन्त ही वज्रजंघ का जीव खड़ा होकर विनय से उनका सत्कार करने लगा। सत्य ही है-पूर्व जन्म के संस्कार जीवों को हित-कार्य में प्रेरित करते हैं। दोनों मुनिवरों के समक्ष अपनी स्त्री सहित खड़ा हुआ वज्रजंघ का जीव ऐसा शोभित होता था कि सूर्य
और प्रतिसूर्य के समक्ष जैसा कमलिनीसहित प्रभात शोभित होता है। वज्रजंघ के जीव ने भक्तिपूर्वक दोनों मुनियों के चरण में अर्घ्य चढ़ाकर उन्हें नमस्कार किया; उस समय उनके नयनों से हर्ष के अश्रु निकल-निकलकर मुनिराज के चरण पर पड़ने लगे। मानो कि नयनों द्वारा वह मुनिराज के चरणों का प्रक्षालन ही करता हो! स्त्रीसहित प्रणाम करते इस वज्रजंघ को आशीर्वाद देकर वे दोनों मुनिवर योग्य स्थान पर यथाक्रम बिराजमान हुए।
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