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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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* अब सम्यग्दृष्टि मनुष्य में दो बात हैसामान्यरूप से तो सम्यग्दृष्टि मनुष्य मरकर स्वर्ग में ही जाता है।
किन्तु जिसे सम्यग्दर्शन से पूर्व मिथ्यात्वदशा में आयुष्य बंध गयी हो और पश्चात् सम्यग्दर्शन पाया हो, वह जीव, सम्यक्त्वसहित मरकर, यदि नरक की आयु बँधी हो तो पहले नरक में जाता है और यदि तिर्यंच की या मनुष्य की आयु बँधी हो तो भोगभूमि के तिर्यंच या मनुष्य में उत्पन्न होता है फिर इसमें इतनी विशेषता है कि ऐसे जीव क्षायिक सम्यग्दृष्टि ही होते हैं। ___-जैसे कि श्रेणिक राजा; उन्होंने पहले अज्ञानदशा में जैन मुनिराज पर उपसर्ग करके सातवें नरक की आयु का बन्ध किया, किन्तु फिर जैनधर्म को प्राप्त हुए और महावीर प्रभु के चरण सान्निध्य में क्षायिक सम्यग्दर्शन पाया, वहाँ नरक की स्थिति घटकर असंख्यात वर्षों में से चौरासी हजार वर्ष की ही रही, और सातवीं के बदले पहले नरक में गये। जिस गति की आयु बँध गयी हो, वह गति नहीं बदलती। चौरासी हजार वर्ष की स्थिति पूर्ण होने पर वहाँ से निकलकर वह जीव, भरतक्षेत्र में तीन लोक के नाथ तीर्थंकर परमात्मा होगा- यह सम्यक्त्व का प्रताप है। योगसार में कहते हैं कि -
सम्यग्दृष्टि जीव को दुर्गति गमन न होय,
यदि जाय तो दोष नहीं, पूर्व कर्म क्षय होय॥ अहो! सम्यग्दृष्टि जीव, सिद्धगति का साधक है ! उसे अब दुर्गति कैसी? सम्यग्दृष्टि जीव को सम्यक्त्व के पश्चात् दुर्गति गमन नहीं होता; पूर्व में बाँधी हुई आयु के कारण कदाचित् नरक
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