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[सम्यग्दर्शन : भाग-5
सम्यग्दर्शन कर लेने योग्य है। यह अवसर चूकने योग्य नहीं है। ऐसा सम्यग्दर्शन जिसका मूल है-ऐसा वीतरागी धर्म 'दंसण मूलो धम्मो'–जिनवरदेव ने उपदेश किया है। ढाई हजार वर्ष पहले महावीर तीर्थंकर इस भरतक्षेत्र में ऐसा ही उपदेश देते थे
और उसे सुनकर अनेक जीव सम्यक्त्व प्राप्त करते थे: अभी सीमन्धरादि तीर्थंकर भगवन्त विदेहक्षेत्र में ऐसा ही उपदेश देते हैं और उसे झेलकर कितने ही जीव सम्यग्दर्शन प्राप्त करते हैं। अभी यहाँ भी ऐसा सम्यग्दर्शन प्राप्त किया जा सकता है। प्रत्येक आत्मार्थी जीव को ऐसा उत्तम कल्याणकारी सम्यग्दर्शन अवश्य करना चाहिए। इसलिए हे विवेकी आत्मा! तू इस अवसर में सम्यग्दर्शन का ऐसा माहात्म्य सुनकर सावधान हो और सम्यग्दर्शन प्राप्त कर... अनुभवी ज्ञानी से समझकर सम्यग्दर्शन प्रगट करना, यह मनुष्य जीवन का अमूल्य कार्य है, इसके बिना जीवन को व्यर्थ मत गँवा।
शरीर और आत्मा भिन्न है, राग और आत्मा भिन्न है; शरीर और रागरहित तेरा चैतन्यतत्त्व अखण्ड ऐसा का ऐसा तुझमें है। चैतन्यमय तेरे स्वतत्त्व को पर से भिन्न देखकर प्रसन्नता द्वारा अनुभव में ले
और मोक्षमार्ग में आ जा। लाख-करोड़ रुपये देने पर भी जिसका एक क्षण मिलना मुश्किल है-ऐसा यह मनुष्य जीवन वृथा न गँवा। मनुष्यपने की शोभा सम्यग्दर्शन से है; इसलिए इस जन्म में सम्यग्दर्शन प्रगट कर ले, जिससे आत्मा में मोक्षमार्ग शुरु हो जाये। अमूल्य जीवन में उससे भी अमूल्य ऐसा सम्यग्दर्शन प्रगट कर। करोड़ों रुपये या परिवार, वह कोई शरण नहीं है, पुण्य भी शरण नहीं है; सम्यग्दर्शन ही शरण है। उस सम्यग्दर्शन द्वारा ही जीवन
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