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सम्यग्दर्शन : भाग-5]
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सच्चा हुआ और ऐसे श्रद्धा - ज्ञान द्वारा अनुभव में लिये हुए अपने शुद्धात्मा में लीन होने पर चारित्र भी सच्चा हुआ । इसलिए ह 'मोक्षमहल की प्रथम सीढ़ी... सम्यक् धारो भव्य पवित्रा । ' धर्म की पहली सीढ़ी पुण्य नहीं परन्तु सम्यग्दर्शन है । सम्यग्दर्शन के बिना जीव, पुण्य भी अनन्त बार कर चुका परन्तु वह संसार का ही कारण हुआ; धर्म का कारण जरा भी नहीं हुआ । धर्म और मोक्ष का कारण सम्यग्दर्शन ही है । सम्यग्दर्शन कर-करके अनन्त जीव मोक्ष में पधारे हैं; सम्यग्दर्शन के बिना कोई भी जीव मोक्ष को प्राप्त नहीं हुआ।
आत्मा क्या है ? इसे जाने बिना जो राग को ही आत्मा मानता है, उसे सम्यग्दर्शन नहीं; सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान और चारित्र भी नहीं। सम्यग्दर्शनसहित ही ज्ञान और चारित्र शोभते हैं । इसलिए हे भव्य! ऐसे पवित्र सम्यक्त्व को अर्थात् निश्चयसम्यक्त्व को तू शीघ्र धारण कर । काल गँवाये बिना ऐसा सम्यक्त्व प्रगट कर। आत्मबोध बिना शुभराग से तो मात्र पुण्य बन्धन है; उसमें मोक्षमार्ग नहीं और सम्यग्दर्शन के पश्चात् भी कहीं राग, वह मोक्ष का मार्ग नहीं; रागरहित जो रत्नत्रय है, वही मोक्षमार्ग है; जितना राग है, उतना तो बन्धन है।
व्यवहारसम्यग्दर्शन, वह राग है-विकल्प है; वह पवित्र नहीं निश्चयसम्यग्दर्शन पवित्र है, वीतराग है, निर्विकल्प है। विकल्प से भिन्न पड़कर चेतना द्वारा ज्ञानानन्दस्वरूप आत्मा के अनुभवपूर्वक प्रतीति करना, वह सच्चा सम्यक्त्व है, वह मोक्ष का सोपान है I इसीलिए शुद्धात्मा को अनुभव में लेकर ऐसे सम्यक्त्व को धारण
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