SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com 114] [सम्यग्दर्शन : भाग-5 जीतने पर भी, अन्तर में जो मिथ्यात्व को नहीं जीत सका, वह वास्तव में शूरवीर नहीं है। जिसने मिथ्यात्व को जीत लिया, वह समकिती ही वास्तविक शूरवीर है। सम्यग्दर्शन के बिना मनुष्यों को पशु-समान कहा है और सम्यग्दर्शनसहित के पशुओं को भी देव-समान कहा है। लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करने से या अनेक प्रकार के पुण्य के शुभभाव करने से भी जो सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं होता; वैसा दुर्लभ सम्यग्दर्शन प्राप्त करके, उसे अचलरूप से सम्हाल रखना, वही जीव को करनेयोग्य है। ऐसे सम्यग्दृष्टि को मरण इत्यादि सात प्रकार के भय नहीं होते। वे आत्मा की आराधना में नि:शंक है, इसलिए परलोक में मेरी गति कैसी होगी? मुझे नरक के दुःख भोगने पड़ेंगे अथवा तो दूसरे क्या-क्या दुःख भोगने पड़ेंगे? ऐसा भय उसे नहीं होता। मैं जहाँ जाऊँगा, वहाँ सम्यक्त्व के प्रताप से मेरे चैतन्य के सुख को ही भोगूंगा; उससे भिन्न दूसरा कोई भोग मेरे ज्ञान में नहीं है-ऐसा उसे विश्वास है। वह समस्त कर्मकृत उपाधि को अपने से भिन्न अनुभव करता है; इसलिए कर्मकृत संसारी सुख-दुःख को वह अपने नहीं गिनता और जन्म-मरण का उसे भय नहीं है, क्योंकि आत्मा तो अजर-अमर है, उसे जन्म या मरण नहीं; ऐसे जन्म-मरण से रहित अविनाशी आत्माराम का अनुभव किया, फिर जन्म-मरण कैसे? और जन्म-मरण का भय कैसा? और मेरी चैतन्यलक्ष्मी मेरे आत्मा में ऐसी अभेद है कि कोई उसे लूट नहीं सकता; आत्मा स्वयं अपने आप में गुप्त है-स्वरक्षित है, कोई उसका नाश नहीं कर सकता, उसे हर नहीं सकता; इस प्रकार सम्यग्दृष्टि निजस्वरूप में सर्व प्रकार से निःशंक है तथा चैतन्य की अपार महिमा के समक्ष Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy