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निवेदन स...म्य...ग्द...श...न! अहा! जिसका नाम सुनने पर भी आत्मार्थी जीव का हृदय उत्कृण्ठा से उल्लसित हो जाता है-जैसे समीप आ रहे मेघ की गर्जना सुनते ही मयूर की गर्दन उत्कण्ठा से ऊँची हो जाती है। ऐसे सम्यग्दर्शन का स्वरूप तथा उसकी महिमा दर्शानेवाले अनेकविध लेखों का यह दूसरा संग्रह तैयार करके जिज्ञासुओं के हाथ में प्रदान करते हुए आनन्द होता है। ____ मानव जीवन में सम्यग्दर्शन कितना आवश्यक कर्तव्य है वह समझ में आवे और उस सम्यग्दर्शन का प्रयत्न करने की प्रेरणा जागृत हो... वह इस पुस्तक का उद्देश्य है। इस हेतु से सम्यग्दर्शन सम्बन्धी विविध लेखों का इसमें सङ्कलन किया है। लेखों का चयन विविध कोटि के जीवों को लक्ष्य में रखकर किया गया है।
इस काल में इस भरतक्षेत्र में सम्यग्दर्शन धारक महात्माओं की यद्यपि अत्यन्त विरलता है तथापि मुमुक्षु जीवों के सद्भाग्य से उनका अभाव नहीं है, अभी भी खारे समुद्र में मीठे जल की धारा की तरह कोई-कोई धर्मात्मा इस भारतभूमि में विचरण करते हैं। ऐसे एक पवित्र धर्मात्मा परम कृपालु पूज्यश्री कहान गुरुदेव स्वयं के स्वानुभवपूर्वक भव्य जीवों को सम्यग्दर्शन का स्वरूप समझा रहे हैं। आपश्री की मङ्गलकारी चरणछाया में रहकर सम्यग्दर्शन की परम महिमा का और उसकी प्राप्ति के उपाय का श्रवण करना वह मानव जीवन की कृतार्थता है। परम पूज्य गुरुदेव अपने कल्याणकारी उपदेश द्वारा सम्यग्दर्शन का जो स्वरूप समझा रहे हैं उसी के एक अल्प अंश का इस पुस्तक में संग्रह किया है।
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