SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2] जिसमें वास्तव में सुख हो, उसमें चाहे जितने आगे ही आगे जाने पर कभी भी उकताहट नहीं आती। स्वभाव में सुख है तो उसमें जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे सुख बढ़ता है... तथा उकताहट नहीं आती और विषय-सुखों में उकताहट आये बिना नहीं रहती। परविषय दो प्रकार के हैं - शुभ-अशुभ। पाप के भाव में तो उकताहट है और मन्दिर, भक्ति, दया इत्यादि शुभ के भाव में भी लम्बाते-लम्बाते अन्ततः थकता है और वहाँ से हटने का मन होता है। यदि उस शुभ में सुख होता तो वहाँ से हटने का मन क्यों होता है? अज्ञानी जीव, शुभ से हटकर शुद्ध में नहीं जाता परन्तु शुभ से हटकर वापस अशुभ में जाता है, अर्थात् परसन्मुख के विषयों में ही रहकर शुभ और अशुभ में ही फुदकता है परन्तु अभी तक पर सन्मुखता में रहा, तथापि कहीं भी सुख अनुभव में नहीं आया; इसलिए परसन्मुखता के झुकाव में सुख नहीं, अर्थात् इन्द्रियविषयों में सुख नहीं परन्तु स्वसन्मुख के अन्तर्मुख अवलोकन में ही सुख है - अतीन्द्रियज्ञान में ही सुख है' - ऐसा निर्णय करके, यदि स्वसन्मुख झुके तो सिद्ध भगवान जैसे आत्मा के सुख का अनुभव प्रगट हो और विषयों में से रुचि हट जाये। इस दशा का नाम धर्म है। हे भाई! अन्ततः दीर्घ काल में भी तुझे विषयों में (शुभ या अशुभ में) थककर उनमें सुख से इनकार करना पड़ता है तो वर्तमान में ही स्वभाव के सुख की हाँ करके विषयों में सुख की ना कर न! विषयों के लक्ष्य से विषयों के सुख की ना करता है; इसलिए वह 'ना' टिकती नहीं और फिर से दूसरे इन्द्रिय-विषयों Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy