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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2] [121 आत्मा में सम्यग्ज्ञानरूपी डोरा पिरोया है, उसे कदाचित् एक-दो भव हों तो भी उसका आत्मभान मिटता नहीं है और वह संसार में दीर्घ काल तक परिभ्रमण नहीं करता है। इसलिए जिसे भवभ्रमण का भय हो, उसे इस मनुष्यभव में सच्ची समझरूपी डोरा आत्मा में पिरो लेना चाहिए। • जीवन गँवा देता है... मुख्यरूप से मनुष्यभव में ही सच्ची समझ उपलब्ध होती है - ऐसा मनुष्यभव महादुर्लभ है। मनुष्यभव तो आत्मा की समझ करने से ही सार्थक है। लोग कहते हैं 'चलो भाई मेला देखने, यह मनुष्यभव फिर से नहीं मिलेगा, चलो मेले में।' अरे भाई! क्या तुझे मेला देखने के लिये यह मनुष्यभव मिला है ? अहो! अज्ञानी जीव यह मनुष्यभव प्राप्त करके, विषयभोगों में सुख मानकर अटक जाते हैं। जिस प्रकार बालक एक पेड़ा / मिष्ठान के मूल्य में लाखों का हार दे देता है; उसी प्रकार अज्ञानी जीव, पुण्य-पाप और विषयभोग के स्वाद में अमूल्य चेतनरूपी आत्मा को बेच देता है। महामूल्यवान् मनुष्यभव में आत्मा की समझ करने के बदले विषयभोग में जीवन गँवा देता है। (पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी) Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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