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________________ www.vitragvani.com 70] [ सम्यग्दर्शन : भाग-1 ही वैसा जानता है और वह जीव, क्षायिकसम्यक्त्व के ही मार्ग पर आरूढ़ है। हम अपूर्ण अथवा ढ़ीली बात नहीं करते। T पञ्चम काल के मुनिराज ने यह बात कही है और पञ्चम काल के जीवों के लिए मोहक्षय का उपाय इसमें बताया है। सभी जीवों के लिये एक ही उपाय है । पञ्चम काल के जीवों के लिए कोई दूसरा उपाय नहीं है। जीव तो सभी काल में परिपूर्ण ही है, तब फिर उसे कौन रोक सकता है ? कोई नहीं रोकता। भरतक्षेत्र अथवा पञ्चम काल कोई भी जीव को पुरुषार्थ करने से नहीं रोकता। कौन कहता है कि पञ्चम काल में भरतक्षेत्र से मुक्ति नहीं है ? आज भी यदि कोई महाविदेहक्षेत्र में से ध्यानस्थ मुनि को उठाकर यहाँ भरतक्षेत्र में रख जाए तो पञ्चम काल और भरतक्षेत्र के होने पर भी वे मुनि, पुरुषार्थ के द्वारा क्षपक श्रेणी को लगाकर केवलज्ञान और मुक्ति को प्राप्त कर लेंगे। इससे यह सिद्ध हुआ कि मोक्ष किसी काल अथवा क्षेत्र के द्वारा नहीं रुकता। पञ्चम काल में भरतक्षेत्र में जन्मा हुआ जीव उस भव से मोक्ष को प्राप्त नहीं होता, इसका कारण काल अथवा क्षेत्र नहीं है, किन्तु वह जीव स्वयं ही अपनी योग्यता के कारण मन्द पुरुषार्थी है, इसलिए बाह्य निमित्त भी वैसे ही प्राप्त होते हैं। यदि जीव स्वयं तीव्र पुरुषार्थ करके मोक्ष प्राप्त करने के लिये तैयार हो जाए, तो उसे बाह्य में भी क्षेत्र इत्यादि अनुकूल निमित्त प्राप्त हो ही जाते हैं अर्थात् काल अथवा क्षेत्र की ओर देखने की आवश्यकता नहीं रहती, किन्तु पुरुषार्थ की ओर ही देखना पड़ता है । पुरुषार्थ के अनुसार धर्म होता है । काल अथवा क्षेत्र के अनुसार धर्म नहीं होता । Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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