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________________ www.vitragvani.com __ जीवन का कर्तव्य अध्यात्मतत्त्व की बात समझने को आनेवाले जिज्ञास के वैराग्य और कषाय की मन्दता अवश्य होती है अथवा यह कहना चाहिए कि जिसे वैराग्य होता है और कषाय की मन्दता होती है, उसी को स्वरूप को समझने की जिज्ञासा जागृत होती है। मन्दकषाय की बात तो सभी करते हैं, किन्तु सर्व कषाय से रहित अपने आत्मतत्त्व के स्वरूप को समझकर, जन्म-मरण के अन्त की नि:शंकता आ जाए ऐसी बात जिनधर्म में ही है। अनन्त काल में तत्त्व को समझने का सुयोग प्राप्त हुआ है और शरीर के छूटने का समय आ गया है, इस समय भी यदि कषाय को छोड़कर आत्मस्वरूप को नहीं समझेगा तो फिर कब समझेगा? पुरुषार्थसिद्धि-उपाय में कहा गया है कि पहले जिज्ञासु जीव को सम्यग्दर्शनपूर्वक मुनिधर्म का उपदेश देना चाहिए, किन्तु यहाँ तो पहले सम्यग्दर्शन प्रगट करने की बात कही जा रही है। ___ हे भाई! मानवजीवन की देहस्थिति पूर्ण होने पर, यदि स्वभाव की रुचि और परिणति साथ में न ले गया तो तूने इस मानवजीवन में कोई आत्मकार्य नहीं किया। शरीर त्याग करके जानेवाले जीव के साथ क्या जानेवाला है ? यदि जीवन में तत्त्व समझने का प्रयत्न किया होगा तो ममतारहित स्वरूप की रुचि और परिणति साथ में ले जाएगा और यदि ऐसा प्रयत्न नहीं किया तथा पर का ममत्व करने में ही जीवन व्यतीत कर दिया तो उसके साथ मात्र ममतभाव Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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