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________________ 40] [ सम्यग्दर्शन : भाग - 1 अनादिकालीन विपरीत परिणमन था, वह रुककर अब स्वभाव की ओर परिणमन प्रारम्भ हो जाता है । अहो ! इसमें स्वभाव का अनन्त पुरुषार्थ है । द्रव्यलिङ्गी साधु ने क्या किया ? : अज्ञानी को राग-द्वेष के समय ज्ञान पृथक् नहीं दिखाई देता, इसलिए वह आत्मा और बन्ध के बीच भेद नहीं जानता । आत्मा और बन्ध के बीच भेद को जाने बिना द्रव्यलिङ्गी साधु होकर नववें ग्रैवेयक तक जानेयोग्य चारित्र का पालन किया और इतनी मन्दकषाय कर ली कि यदि कोई उसे जला डाले तो भी क्रोध न करे, छह-छह महिने तक आहार न करे, तथापि भेदज्ञान के बिना अनन्त संसार में ही परिभ्रमण किया। उसने आत्मा का कुछ किया ही नहीं; मात्र बन्धभाव के प्रकार को ही बदला है । इतना सब करने पर भी कुछ नहीं ? प्रश्न उत्तर जिसे ऐसा लगता है कि 'इतना सब किया'उसके मिथ्यात्व की प्रबलता है । जो बाहर से शरीर की क्रिया इत्यादि ऊपरी दृष्टि से देखता है, उसे ऐसा लगता है कि 'इतना सब तो किया है;' किन्तु ज्ञानी कहते हैं कि उसने कुछ भी अपूर्व नहीं किया, मात्र बन्धभाव ही किया है, शरीर की क्रिया का और शुभराग का अहंकार किया है। यदि व्यवहार से कहा जाए तो उसने पुण्यभाव किया और परमार्थ से देखा जाए तो पाप ही किया है। - www.vitragvani.com — राग अथवा विकल्प से आत्मा को लाभ मानना, वह महा मिथ्यात्व है, उसे भगवान पाप ही कहते हैं । वह एक प्रकार के बन्धभाव को को छोड़कर दूसरे प्रकार का बन्धभाव Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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