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________________ सम्यग्दर्शन : भाग-1] www.vitragvani.com जीव को कल्याणकारी कौन ? तीन काल और तीन लोक में प्राणियों को सम्यक्त्व के समान अन्य कोई श्रेयरुप नहीं है और मिथ्यादर्शन के समान अन्य कोई अहितरूप नहीं है। ( - रत्नकरण्ड श्रावकाचार - ३४) [321 सर्वगुणों की शोभा सम्यग्दर्शन से है जिस प्रकार नगर की शोभा दरवाजों से है, मुख की शोभा आँखों से है और वृक्ष की स्थिरता मूल से है; उसी प्रकार ज्ञान, चारित्र, तप और वीर्य की शोभा सम्यग्दर्शन से है । ( - भगवती आराधना, पृष्ठ-७४० ) शान्तभाव, ज्ञान, चारित्र और तप - ये सब यदि सम्यग्दर्शन - रहित हों तो पुरुष को पत्थर की भाँति बोझसमान हैं; यदि उनके साथ सम्यग्दर्शन हो तो वे महामणिसमान पूज्य हैं । ( - आत्मानुशासन- १५ ) लक्ष चौरासी योनि में, भटका काल अनन्त । पर सम्यक्त्व तू नहिं लहा, सो जानो निर्भान्त ॥ ( - योगसार - २५) - यह जीव अनादि काल से चौरासी लाख योनियों में भटक रहा है, परन्तु वह कभी सम्यक्त्व को प्राप्त नहीं हुआ - ऐसा हे जीव ! तू निःसन्देह जान ! चार गति दुःख से डरे, तो तज सब परभाव। शुद्धात्म चिन्तन करि, लो शिव सुख का भाव ॥ ( - योगसार - ५ ) हे जीव ! यदि तू चार गति के भ्रमण से डरता हो तो परभावों का Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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