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सम्यग्दर्शन : भाग-1]
[305 के विचार होते तो हैं परन्तु वे नयपक्ष के कोई भी विचार, स्वरूपानुभव में सहायक नहीं होते। सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान का सम्बन्ध किसके साथ है ? :
सम्यग्दर्शन, निर्विकल्प सामान्यगुण है, उसका मात्र निश्चय अखण्ड स्वभाव के साथ ही सम्बन्ध है, अखण्ड द्रव्य जो भङ्ग -भेदरहित है, वही सम्यग्दर्शन को मान्य है। सम्यग्दर्शन पर्याय को स्वीकार नहीं करता, किन्तु सम्यग्दर्शन के साथ जो सम्यग्ज्ञान रहता है, उसका सम्बन्ध निश्चय-व्यवहार दोनों के साथ है, अर्थात् निश्चय -अखण्ड स्वभाव को तथा व्यवहार में पर्याय के जो भङ्गभेद होते हैं, उन सबको सम्यग्ज्ञान जान लेता है। सम्यग्दर्शन एक निर्मल पर्याय है, किन्तु सम्यग्दर्शन स्वयं अपने को यह नहीं जानता कि मैं एक निर्मल पर्याय हूँ। सम्यग्दर्शन का एक ही विषय अखण्डद्रव्य है; पर्याय, सम्यग्दर्शन का विषय नहीं है।
प्रश्न – सम्यग्दर्शन का विषय अखण्ड है और वह पर्याय को स्वीकार नहीं करता, तब फिर सम्यग्दर्शन के समय पर्याय कहाँ चली गयी? सम्यग्दर्शन स्वयं पर्याय है, क्या पर्याय, द्रव्य से भिन्न हो गयी?
उत्तर – सम्यग्दर्शन का विषय तो अखण्डद्रव्य ही है। सम्यग्दर्शन के विषय में द्रव्य-गुण-पर्याय का भेद नहीं है। द्रव्यगुण से अभिन्न वस्तु ही सम्यग्दर्शन को मान्य है। अभेद वस्तु का लक्ष्य करने पर जो निर्मल पर्याय प्रगट होती है, वह सामान्य वस्तु के साथ अभेद हो जाती है। सम्यग्दर्शनरूप जो पर्याय है, उसे भी
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