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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [295 अवस्था में द्रवित होता रहता है - परिणमन करता रहता है । द्रव्य त्रिकाल अस्तिरूप होने पर भी सदा एक-सा (कूटस्थ) नहीं है, परन्तु निरन्तर नित्य बदलनेवाला-परिणामी है। यदि द्रव्य में परिणमन न हो तो जीव के संसारदशा का नाश होकर मोक्ष की उत्पत्ति कैसे हो? शरीर की बाल्यावस्था में से युवावस्था कैसे हो? छहों द्रव्यों में द्रव्यत्वशक्ति होने से सभी स्वतन्त्ररूप से अपनी-अपनी पर्याय का परिणमन कर रहे हैं। कोई द्रव्य अपनी पर्याय का परिणमन करने के लिये दूसरे द्रव्य की सहायता अथवा प्रभाव की अपेक्षा नहीं रखता। प्रमेयत्वगुण के कारण द्रव्य, ज्ञान में प्रतीत होते हैं, छहों द्रव्य में प्रमेयत्वशक्ति होने से ज्ञान छहों द्रव्य के स्वरूप का निर्णय कर सकता है। यदि वस्तु में प्रमेयत्वगुण न हो तो वह अपने को यह कैसे बता सकेगी कि 'यह वस्तु है'? जगत का कोई भी पदार्थ, ज्ञान के द्वारा अगम्य नहीं है। आत्मा में प्रमेयत्वगुण होने से आत्मा स्वयं अपने को जान सकता है। ___ अगुरुलघुत्वगुण के कारण प्रत्येक वस्तु निज स्वरूप में ही स्थिर रहती है। जीव बदलकर कभी परमाणु नहीं हो जाता और परमाणु बदलकर कभी जीवरूप नहीं हो जाता। जड़ सदा जडरूप में और चेतन सदा चेतनरूप में रहता है। ज्ञान की प्रगटता विकारदशा में चाहे जितनी कम हो, तथापि ऐसा नहीं हो सकता कि जीवद्रव्य बिलकुल ज्ञानहीन हो जाए। इस शक्ति के कारण द्रव्य के गुण छिन्न-भिन्न नहीं हो जाते तथा कोई दो वस्तुयें एकरूप होकर तीसरी नयी प्रकार की वस्तु उत्पन्न नहीं होती, क्योंकि वस्तु का स्वरूप कदापि अन्यथा नहीं होता। प्रदेशत्वगुण के कारण प्रत्येक Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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