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(धर्म की पहली भूमिका (भाग 3))
[आत्मस्वरूप की विपरीत मान्यता को मिथ्यात्व कहते हैं। मिथ्यात्व ही सबसे बड़ा पाप है और वही हिंसा है। उसे
आत्मा की यथार्थ समझ के द्वारा दूर किया जा सकता है। यथार्थ समझ के होने पर ही धर्म की सत्-क्रिया प्रारम्भ होती है और अधर्मरूपी असत्-क्रिया का नाश होता है। यथार्थ समझ के द्वारा बालक, युवक, वृद्ध और सभी जीव सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए वस्तुस्वरूप की यथार्थ समझ प्राप्त करनी चाहिए। वस्तुस्वरूप का वर्णन करते हुए, नवतत्त्व, द्रव्य-पर्याय, निश्चय-व्यवहार, उत्पाद-व्ययध्रौव्य, अस्ति-नास्ति, नित्य-अनित्य, सामान्य-विशेष इत्यादि का स्वरूप संक्षेप में बता चुके हैं। अब छह द्रव्य को विशेषता सिद्ध करके वस्तुस्वरूपसम्बन्धी विशेष ज्ञातव्य कुछ बातें बतायी जाती हैं और अन्त में उसका प्रयोजन बतलाकर यह विषय समाप्त किया जाता है।] वस्तु के अस्तित्व का निर्णय :
प्रश्न – यह कहा है कि आत्मा और परमाणु वस्तु हैं; परन्तु यदि परमाणु वस्तु हों तो वे आँखों से दिखायी क्यों नहीं देते? और आत्मा भी आँखों से क्यों नहीं दिखायी देता? जो वस्तु है, वह आँखों से दिखायी देनी चाहिए? उत्तर - यह सिद्धान्त ठीक नहीं है कि जितना आँखों से
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