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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [267 त्याग करके एवं सच्चे देव, गुरु, शास्त्र को पहिचानकर, जीव ने व्यवहारिक स्थूल भूल का (गृहीत मिथ्यात्व का) त्याग तो अनेकबार किया और असत् निमित्तों का लक्ष्य छोड़कर, सत् निमित्तों के लक्ष्य से व्यवहारशुद्धि तो की, परन्तु अनादि काल से चली आयी अपनी आत्मा सम्बन्धी महाभूल को जीव ने कभी दूर नहीं किया। यह अनादिकालीन अगृहीत मिथ्यात्व, आत्मा की यथार्थ समझ के बिना दूर नहीं हो सकता। गृहीत मिथ्यात्व का त्याग करके और द्रव्यलिङ्गी साधु होकर अनन्त बार निरतिचार पञ्च महाव्रत पालन किये, किन्तु महाव्रत की क्रिया से और राग से धर्म मान लिया; इसलिए उसकी महाभूल दूर नहीं हुई और संसार में परिभ्रमण करता रहा। सच्चे निमित्तों को स्वीकार करके व्यावहारिक असत्य का त्याग तो किया, किन्तु अपने निरालम्बी चैतन्यस्वरूप आत्मा को स्वीकार नहीं किया, इसलिए निश्चय का असत्य दूर नहीं हुआ। आत्मस्वरूप की खबर न होने से, निमित्त के लक्ष्य से - शुभराग से, देव-गुरु-शास्त्र से, अज्ञानी अपने को लाभ मानता है, यह पराश्रितता का अनादिकालीन भ्रम, मूल में से दूर नहीं हुआ; इसलिए सूक्ष्म भूलरूप अगृहीत मिथ्यात्व दूर नहीं हुआ । आत्मप्रतीति के बिना थोड़े समय के लिए गृहीत मिथ्यात्व को दूर करके शुभराग के द्वारा स्वर्ग में नववें ग्रैवेयक तक गया; किन्तु मूल में विपरीत मान्यता का सद्भाव होने से, राग से लाभ मानकर और देवपद में सुख मानकर, वहाँ से परिभ्रमण करते हुए तीव्र अज्ञान के कारण एकेन्द्रिय-निगोद की तुच्छ दशा में अनन्त काल तक अनन्त दुःख प्राप्त किये। अपने स्वरूप को समझने की परवाह न करने से Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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