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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [3 सम्यक्त्व का माहात्म्य । 1. सम्यक्त्वहीन जीव, यदि पुण्यसहित भी हो तो भी ज्ञानीजन उसे पापी कहते हैं, क्योंकि पुण्य-पापरहित स्वरूप की प्रतीति न होने से, पुण्य के फल की मिठास में, पुण्य का व्यय करके स्वरूप की प्रतीतिरहित होने से पाप में जाएगा। 2. सम्यक्त्वसहित नरकवास भी भला है और सम्यक्त्वहीन होकर देवलोक का निवास भी शोभास्पद नहीं होता। (-श्रीपरमात्मप्रकाश, पृष्ठ 200) 3. संसाररूपी अपार समुद्र से रत्नत्रयरूपी जहाज को पार करने के लिए सम्यग्दर्शन चतुर खेवटिया (नाविक) के समान है। ____4. जिस जीव के सम्यग्दर्शन है, वह अनन्त सुख पाता है और जिस जीव के सम्यग्दर्शन नहीं है, वह यदि पुण्य करे तो भी, अनन्त दुःखों को भोगता है। इस प्रकार सम्यग्दर्शन की अनेकविध महिमा है, इसलिए जो अनन्त सुख चाहते हैं, उन समस्त जीवों को, उसे प्राप्त करने का सर्वप्रथम उपाय सम्यग्दर्शन ही है। ___ श्रीमद् राजचन्द्र ने भी आत्मसिद्धि के प्रथम पद में कहा है कि - जो स्वरूप समझे बिना, पाया दुःख अनन्त। समझाया उन पद नमू, श्री सद्गुरु भगवन्त ॥1॥ जिस स्वरूप को समझे बिना, अर्थात् आत्मप्रतीति के बिना, Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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