SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com 98] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 लागू किए गये हैं; इसलिए यह पीलापन आदि सोने का गुण हैं; इसी प्रकार अरहन्त की पहले की और बाद की अवस्था में जो स्थिर रहता है, वह आत्मद्रव्य है – यह कहा है, परन्तु यह भी जान लेना चाहिए कि आत्म द्रव्य कैसा है ? आत्मा ज्ञानरूप है, दर्शनरूप है, चारित्ररूप है, इस प्रकार आत्मद्रव्य के लिए ज्ञान, दर्शन, और चारित्र विशेषण लागू होते हैं; इसलिए ज्ञान आदि आत्मद्रव्य के गुण हैं। ___ द्रव्य की शक्ति को गुण कहा जाता है। आत्मा चेतन द्रव्य है और चैतन्य उसका विशेषण है। परमाणु में जो पुद्गल है, सो द्रव्य है और वर्ण, गन्ध इत्यादि उसके विशेषण-गुण हैं । वस्तु में कोई विशेषण तो होता ही है, जैसे मिठास, गुड़ का विशेषण है। इस प्रकार आत्मद्रव्य का विशेषण क्या है ? अरहन्त भगवान आत्मद्रव्य किस प्रकार है? यह पहले कहा जा चुका है। अरहन्त में किञ्चित्मात्र भी राग नहीं है और परिपूर्ण ज्ञान है, अर्थात् ज्ञान आतमद्रव्य का विशेषण है। यहाँ मुख्यता से ज्ञान की बात कही है। इसी प्रकार दर्शन, चारित्र, वीर्य, अस्तित्व इत्यादि जो अनन्त गुण हैं, वे सब आत्मा के विशेषण हैं। अरहन्त, आत्मद्रव्य हैं और उस आत्मा में अनन्त सहवर्ती गुण हैं; वैसा ही मैं भी आत्मद्रव्य हूँ और मुझमें वे सब गुण विद्यमान हैं; इस प्रकार जो अरहन्त के आत्मा को द्रव्य, गुणरूप में जानता है, वह अपने आत्मा को भी द्रव्य, गुणरूप में जानता है। वह स्वयं समझता है कि द्रव्य, गुण के जान लेने पर अब पर्याय में क्या करना चाहिए और इसलिए उसके धर्म होता है। द्रव्य, गण तो जैसे अरहन्त के हैं, वैसे ही सभी आत्माओं के सदा एकरूप हैं। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy