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Verse 32
विद्यावृत्तस्य सम्भूतिस्थितिवृद्धिफलोदयाः । न सन्त्यसति सम्यक्त्वे बीजाभावे तरोरिव ॥ ३२ ॥
सामान्यार्थ - बीज के अभाव में वृक्ष (के अभाव) की तरह, सम्यग्दर्शन के न होने पर ज्ञान ओर चारित्र की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि और फल की उद्भूति नहीं होती है।
Just as it is not possible to have a tree in the absence of a seed, there cannot be origination, steadiness, growth, and fruition of (right) knowledge and (right) conduct without having right faith in the first place.
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