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Ratnakarandaka-śrāvakācāra
नाङ्गहीनमलं छेत्तुं दर्शनं जन्मसन्ततिम् । न हि मन्त्रोऽक्षरन्यूनो निहन्ति विषवेदनाम् ॥२१॥
सामान्यार्थ - अंगो से हीन समयग्दर्शन संसार की सन्तति को छेदने के लिए समर्थ नहीं है क्योंकि एक अक्षर से भी हीन मन्त्र विष की पीड़ा को नष्ट नहीं करता है।
Just as a sacred utterance (mantra) that is deficient even by a syllable loses its power to cure the pain caused by venom, right faith, not reinforced with its (eight) limbs, is incapable of cutting short the worldly cycle (samsāra) of births and deaths.
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