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Section 1 Right Faith प्रथम परिच्छेद
मंगलाचरण नमः श्रीवर्द्धमानाय निर्धूतकलिलात्मने । सालोकानां त्रिलोकानां यद्विद्या दर्पणायते ॥ १ ॥
सामान्यार्थ - जिनकी आत्मा ने कर्मरूप कलंक को नष्ट कर दिया है अर्थात् जो वीतराग हैं अथवा जिनकी आत्मा ने हितोपदेश द्वारा अन्य जीवों को कर्मरूप कलंक से रहित किया है अर्थात् जो हितोपदेशी हैं और जिनका केवलज्ञान अलोक सहित तीनों लोकों के विषय में दर्पण के समान आचरण करता है अर्थात् जो सर्वज्ञ हैं, उन अन्तिम तीर्थंकर श्री वर्द्धमानस्वामी को अथवा अनन्तचतुष्टयरूप लक्ष्मी से वृद्धि को प्राप्त चौबीस तीर्थंकरों को मैं नमस्कार करता हूँ।
INVOCATION
I bow to Lord Vardhamāna who has rid his soul of all karmic dirt and whose teachings reflect, as it were in a mirror, the three worlds (universe) and the beyond (non-universe). The word 'Srīvardhamāna’in the verse is also interpreted as the noble souls of the twenty-four Tīrthankara who have attained the supreme status marked by the treasure of four infinitudes (ananta catustaya). Thereafter, through their divine discourses, have caused the removal of karmic dirt from other souls.
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