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Ratnakarandaka-śrāvakācāra
सम्यग्दर्शनशुद्धः संसारशरीरभोगनिर्विण्णः । पञ्चगुरुचरणशरणो दर्शनिकस्तत्त्वपथगृह्यः ॥१३७ ॥
सामान्यार्थ - जो सम्यग्दर्शन से शुद्ध है, संसार, शरीर और भोगों से विरक्त है, पञ्चपरमेष्ठी के चरणों की शरण जिसे प्राप्त हुई है तथा अष्ट-मूलगुणों को जो धारण कर रहा है वह दर्शनिक श्रावक है।
The householder who is purified by right faith, is unattached to the world, the body and the sensual pleasures, has taken refuge at the Holy Feet of the five Supreme Beings (pañca paramesthi), and is endowed with the eight fundamental virtues (mūlaguņa), is called the darśanika śrāvaka (first stage).
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