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Lord Candraprabha
यस्याङ्गलक्ष्मीपरिवेषभिन्नं तमस्तमोरेरिव रश्मिभिन्नम् । ननाश बाह्यं बहुमानसं च ध्यानप्रदीपातिशयेन भिन्नम् ॥
(8-2-37)
सामान्यार्थ - जैसे सूर्य की किरणों के द्वारा अन्धकार छिन्न-भिन्न कर दिया जाता है उसी तरह जिन्होंने अपने शरीर के प्रभा-मण्डल के द्वारा बाहरी अन्धकार का नाश कर डाला था और शुक्लध्यान रूपी अद्भुत दीपक के प्रभाव से अति गहरा अन्तरङ्ग का अज्ञान-रूपी अन्धकार भी नष्ट कर डाला था।
Just as the rays of the sun annihilate all darkness, he had destroyed the external darkness by the radiant aura of his body and the internal darkness by the supreme effulgence of pure concentration.
स्वपक्षसौस्थित्यमदावलिप्ता वाक्सिंहनादैर्विमदा बभूवुः । प्रवादिनो यस्य मदागण्डा गजा यथा केसरिणो निनादैः ॥
(8-3-38) सामान्यार्थ - जैसे सिंह की गर्जना से मद से अपने कपोलों को भिगोए हुए हाथी मद-रहित हो जाते हैं वैसे ही इन चन्द्रप्रभ भगवान् के वचन-रूपी सिंहनाद से अपने मत-पक्ष की उत्तमता का घमण्ड करने वाले जन मद-रहित हो गए थे।
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