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Svayambhūstotra
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श्री अभिनन्दननाथ जिन
Lord Abhinandananātha
गुणाभिनन्दादभिनन्दनो भवान् दयावधूं क्षान्तिसखीमशिश्रियत् । समाधितन्त्रस्तदुपोपपत्तये द्वयेन नैर्ग्रन्थ्यगुणेन चायुजत् ॥
(4-1-16)
सामान्यार्थ अनन्त ज्ञानादि गुणों का अभिनन्दन करने के कारण आप सच्चे सार्थक ‘अभिनन्दन' नाम को धारण करने वाले हो । आपने क्षमा-रूपी सखी को धारने वाली ऐसी अहिंसा - रूपी वधू को आश्रय में लिया था। आपने आत्मध्यान व धर्मध्यान रूप समाधि की प्राप्ति के लिए अपने को दोनों ही अन्तरङ्ग व बहिरङ्ग परिग्रह त्यागरूप निर्ग्रन्थपने के गुण से अलंकृत किया था।
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Your name Abhinandana appropriately suggests your growing acclaim for the virtues. You had adopted the grand dame Noninjury (ahimsā) who had Forbearance (kşamā) as her friend. For the accomplishment of the supreme meditation on the Self, you renounced all external and internal attachments.
अचेतने तत्कृतबन्धजेऽपि च ममेदमित्याभिनिवेशिकग्रहात् । प्रभङ्गुरे स्थावरनिश्चयेन च क्षतं जगत्तत्त्वमजिग्रहद्भवान् ॥
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(4-2-17)