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Svayambhūstotra
बन्धश्च मोक्षश्च तयोश्च हेतू बद्धश्च मुक्तश्च फलं च मुक्तेः । स्याद्वादिनो नाथ तवैव युक्तं नैकान्तदृष्टेस्त्वमतोऽसि शास्ता ॥
(3-4-14) सामान्यार्थ - हे शम्भवनाथ जिन ! जीव का कर्म-पुद्गलों से बन्ध होना तथा उसका कर्मों से छूट जाना और उन बन्ध और मोक्ष के हेतु बद्ध आत्मा
और मुक्त आत्मा तथा मुक्ति का फल, यह सब व्यवस्था आपके स्याद्वादरूप अनेकान्त मत में ही युक्ति-संगत है, एकान्तवादियों के मत में ये बातें सिद्ध नहीं हो सकती। इसलिए आप ही तत्त्व का यथार्थ उपदेश देने वाले हैं।
O Lord Sambhavanātha! The realities of bondage and liberation, the causes of these, the attributes of the soul that is bound with karmas and the soul that is liberated, can only be incontrovertibly explained with the help of your doctrine of conditional predications (syādavāda) and not by the absolutistic views of the others; you only are the promulgator of Truth.
शक्रोऽप्यशक्तस्तव पुण्यकीर्तेः स्तुत्यां प्रवृत्तः किमु मादृशोऽज्ञः । तथापि भक्त्या स्तुतपादपद्मो ममार्य देयाः शिवतातिमुच्चैः ॥
(3-5-15) सामान्यार्थ - हे गुणों को आश्रय करने वाले परम प्रभु ! निर्मल कीर्तिधारी इन्द्र भी आपकी स्तुति करने में उद्यम करता हुआ असमर्थ हो जाता है तब मेरे समान अज्ञानी (जो सर्वश्रुत व अवधिज्ञान से रहित है) कैसे समर्थ हो
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