________________
Lord Aranātha
सर्वथानियमत्यागी यथादृष्टमपेक्षकः । स्याच्छब्दस्तावके न्याये नान्येषामात्मविद्विषाम् ॥
(18-17-102)
सामान्यार्थ - आपके अनेकान्त न्याय में 'स्यात्' शब्द जो कथंचित् अर्थ में है अर्थात् जो किसी अपेक्षा से कहने वाला है, वह वस्तु सर्व प्रकार से सत् रूप ही है या असत् रूप ही है इत्यादि नियम का त्याग करने वाला है। 'स्यात्' शब्द प्रमाणसिद्ध वस्तु-स्वरूप की अपेक्षा रखने वाला है। अन्य जो एकान्तवादी अपना ही अपघात या बुरा करने वाले हैं उनके न्याय में यह 'स्यात्' शब्द नहीं है।
In your doctrine, the use of the word 'syāt' (meaning, conditional, from a particular standpoint) rules out the absolutistic viewpoint and demonstrates only the relative aspect. Others do not use such stipulation and cause their own destruction.
अनेकान्तोऽप्यनेकान्तः प्रमाणनयसाधनः । अनेकान्तः प्रमाणात्ते तदेकान्तोऽर्पितान्नयात् ॥
(18-18-103)
सामान्यार्थ - हे भगवन् ! आपके मत में प्रमाण और नय रूप साधनों से सिद्ध होने वाला अनेकान्त भी अनेकान्त स्वरूप है। अर्थात् किसी अपेक्षा से अनेकान्त है व किसी अपेक्षा से एकान्त है। प्रमाण की अपेक्षा से जो
127