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Lord Anantanatha
सामान्यार्थ - आपने आत्मा के स्वभाव को कलुषित करने वाले कषाय नाम के शत्रुओं का जड़ से नाश कर दिया और साथ ही आत्मा को सुखाने वाले व संतापित करने वाले कामदेव के खोटे मदरूपी रोग को आत्मध्यान रूपी औषधि के गुणों से विलीन कर दिया। इस तरह वीतरागी होकर आप सर्वज्ञ परमात्मा हो गए।
O Lord Anantanātha! You had not only destroyed completely the soul's enemy called passions, the cause of distress, but also its affliction due to the desire for pleasures, attributed to the overbearing pride of Kamadeva, god of love and erotic desire, through excellent remedy that is pure concentration, and thus became utterly unblemished.
परिश्रमाम्बुर्भयवीचिमालिनी त्वया स्वतृष्णासरिदार्य शोषिता । असङ्गघर्मार्कगभस्तितेजसा परं ततो निर्वृतिघाम तावकम् ॥
(14-3-68)
सामान्यार्थ - हे साधु ! आपने खेद - रूपी जल से भरी हुई व भय की तरङ्गों की माला को रखने वाली ऐसी अपने भीतर जो तृष्णा-रूपी नदी थी उसको अन्तरङ्ग व बहिरङ्ग सर्व परिग्रह का संन्यास - रूप सूर्य की किरणों के तेज से सुखा डाला। इस कारण से आपको उत्कृष्ट निर्वृतिघाम ( परिग्रह त्याग-रूप तेज) प्राप्त हो गया।
O Noble Soul! The water of the river of lustful craving that flowed within you symbolized weariness and the cascade of its
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