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________________ VARIOUS POSITIONS DURING VANDANA AND PACHAKHAN १. गुरुस्थापना मुद्रा। ४. प्रतिक्रमण आलोचना के समय की जिन मुद्रा ३. खमासमण के समय की मुद्रा। दोनों आँखें स्थापनाचार्यजी हाथ को सीधे नीचे झुकते समय पीछे से उँचा अथवा नाक की नोंक के श्वासोश्वास की क्रिया सर्पाकार में नहीं होना चाहिए। सामने रखनी चाहिए। दोनों कहनियों को सहज भाव से करनी चाहिए, रखना चाहिए। अन्दर रखना चाहिए। दोनों हाथों को इस तरह रखना चाहिए बाएँ अथवा दाहिने की शरीर अथवा हाथ की ऊँगलियों की कपड़े का स्पर्श गांठ पर काउस्सग न हो सके। चादर कोर दोनों घुटनों को की संख्या नहीं के साथ गिननी चाहिए। आस-पास रखना चाहिए। रखना चाहिए। दोनों पैरों के बीच पीछे ३ से अधिक तथा ४ से कम (ऊँगली का) चरवले के बिना दोनों पैरों के बीच अंतर रखना चाहिए। कभी भी सामाधिक आगे ४ ऊँगली का अंतर रखना चाहिए। नहीं की जाती है। दो हाथ, दो पैर और मस्तक ये पांचों अंग भूमि को स्पर्श करे तब 'मत्थएण वंदामि' बोलना चाहिए। २. सामायिक, पच्चक्खाण पारते समय तथा अविधि आशातना करते समय की मुद्रा। थोड़ां ४.'वंदिउं''वंदामि''वंदे' तथा 'नमसामि' बोलते समय की मुद्रा। वंदन नमस्कार करते समय अधिक झुकना चाहिए। सामायिक में NEW भी करधनी (कंदोरा) पहनना चाहिए। झुकना चाहिए। ३. देववंदन तथा चैत्यवंदन के समय की जिन मुद्रा। जंद्या (जीभ) सहज मापसे अंदर स्थिर होनी चाहिए। दोनों ओष्ट (होठ) सहजता से अपर नीचे की एक दूसरे को स्पर्श करें। रंग-श्रेणी एक बसने को स्पर्श बाएं हाथ में चरखले की कोर को पीछे तथा डंडी को आगे सोग करना रखनी चाहिए। मुहपत्ति का उपयोग करें। दाहिने हाथ में ममति को तर्जनी करिष्ठ ऊंगली के स्दा खानी चाहिए। दंडी को नीचे से चार ऊंगलियों से पकड़ना चाहिए तथा उसके ऊपर अंगूठे को सीधा रखना चाहिए।
SR No.007706
Book TitleJain Exhibition Part 01 350 Photos by code A to Z NewYork Temple
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages352
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size95 MB
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