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हायक
मक्तामर प्रणत- मौलिमणिप्रभाणामुद्योतकं दलित-पाप-तमोकितानम् । सम्यक् प्रणम्य जिन पादयुग युगादावालम्बनं भवले पततां जनानाम् ॥19॥
भगवान ऋषभदेव के चरण-युगल में भक्तिपूर्वक नमन करते हुए देवताओं के मुकुटमें जड़ी मणियों प्रभु के चरणों की दिव्य कान्ति से और अधिक चमकने लगती है भगवान के उन पवित्र चरणों का स्पर्श ही प्राणियों के पापों का नाश करने वाला है, तथा जो उनके चरणयुगल का आलम्बन लेता है, यह संसार-समुद्र से पार हो जाता है। इस युग के प्रारम्भ में धर्म का प्रवर्तन करने वाले प्रथम तीर्थकर अपनदेव के चरण- गुगल में विधिवत प्रणाम करके में स्तुति करता हूँ।
ભક્તિસભર વંદન કરનાર દેવોના નર્મલા મુગટના શિઓની ક્રાંતિને વધારનાર, પાપરૂપી અંધકારનો નાશ કરનાર, સંસાર સમુદ્રમાં ભટક્તાં જીવોના ઉદ્ધાર કરનાર, એવા આદિયુગના પ્રથમ ધર્મપ્રવર્તક શ્રી આદિનાથ પ્રભુના અલૌકિક ચોનું આલંબને લઈ, ભક્તિપૂર્વક વંદન કરી હું. આ સ્તુતિ નો આરંભ કરીશ.ત.
When men and Gods bow down to Bhagawan Rishabhdev, his radiance dissipates the darkness of their souls. Those who fall at his feet will find forgiveness and salvation, and shall be free from the seas of sin. I begin this prayer by bowing down at the feet of Bhagawan Rishabhdev. (1)