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Dravyasamgraha
अवगासदाणजोग्गं जीवादीणं वियाण आयासं । जेण्हं लोगागासं अल्लोगागासमिदि दुविहं ॥
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गाथा भावार्थ - जो जीव आदि द्रव्यों को अवकाश देने वाला है उसको श्रीजिनेन्द्र देव द्वारा कहा हुआ आकाश-द्रव्य जानो। वह लोकाकाश और अलोकाकाश इन भेदों से दो प्रकार का है।
19. According to Lord Jina, the substance which provides accommodation to substances like souls, is to be known as ākāśa (space). Akāśa comprises two parts: lokākāśa (the universe space), and alokākāśa (the non-universe space).
धम्माऽधम्मा कालो पुग्गलजीवा य संति जावदिये । आयासे सो लोगो तत्तो परदो अलोगुत्तो ॥
(20)
गाथा भावार्थ - धर्म, अधर्म, काल, पुद्गल और जीव - ये पाँचों द्रव्य जितने आकाश में हैं, वह तो लोकाकाश है और उस लोकाकाश के आगे अलोकाकाश है।
20. The part of space (ākāśa) which contains the medium of motion (dharma), the medium of rest (adharma), the substance of time (kāla), the matter (pudgala) and the souls (jīvas) is the universe-space (lokākāśa), beyond which is the non-universe space (alokākāśa).
EXPLANATORY NOTES
Ācārya Umasvami's Tattvārthasūtra
लोकाकाशेऽवगाहः ॥
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