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Dravyasamgraha
गइपरिणयाण धम्मो पुग्गलजीवाण गमणसहयारी । तोयं जह मच्छाणं अच्छंता णेव सो णेई ॥
(17)
गाथा भावार्थ - गति (गमन में) परिणत जो पुद्गल और जीव हैं, उनके गमन में धर्म-द्रव्य सहकारी है - जैसे मत्स्यों के गमन में जल सहकारी है। और नहीं गमन करते हुए पुद्गल और जीवों को वह धर्म-द्रव्य कदापि गमन नहीं कराता है।
17. The substance dharma (medium of motion) renders assistance to souls and matter in their state of motion, just as water assists aquatic animals in their motion; it does not cause them to move if they are stationary.
ठाणजुदाण अधम्मो पुग्गलजीवाण ठाणसहयारी । छाया जह पहियाणं गच्छंता णेव सो धरई ॥
(18)
गाथा भावार्थ - ठहराव-सहित जो पुद्गल और जीव हैं, उनके ठहरने में सहकारी कारण अधर्म-द्रव्य है; जैसे पथिकों (बटोहियों) की ठहरने की स्थिति में छाया सहकारी है। और गमन करते हुए जीव तथा पुद्गलों को वह अधर्म-द्रव्य नहीं ठहराता है।
18. The substance adharma (medium of rest) renders assistance to souls and matter in their state of rest, just as the shade (of a tree etc.) assists travellers in their state of rest; it does not hold them back if they are moving.
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