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________________ अनधिगत रहते हैं - ज्ञात नहीं होते हैं। इसलिए उन अनधिगत अर्थों का अधिगम ज्ञान कराने के लिए एक-एक पद की प्ररूपणा (व्याख्या) करूँगा। जिसकी व्याख्या करने की विधि के यह छह प्रकार हैं (१) संहिता, (२) पदच्छेद, (३) पदों का अर्थ, (४) पदविग्रह, (५) चालना, (६) प्रसिद्धि ॥३॥ और यही सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्त्यनुगम है। इस प्रकार से निर्युक्त्यनुगम और अनुगम की वक्तव्यता का वर्णन पूर्ण हुआ । विवेचन-वृत्तिकार ने सूत्र का लक्षण इस प्रकार बताया है "अप्पग्गंथमहत्थं बत्तीसा दोसविरहियं जं च । क्खणतं सुतं अट्ठय गुणेहि उववेयं ॥" अर्थात् जो अल्पग्रन्थ (अल्प अक्षर वाला) और महार्थयुक्त (अर्थ की अपेक्षा महान् -अधिक विस्तार वाला) हो तथा बत्तीस प्रकार के दोषों से रहित, आठ गुणों से सहित और लक्षणयुक्त हो, उसे सूत्र कहते हैं। सूत्र के आठ गुण ये हैं (१) निर्दोष - दोषों से रहित । "निद्दोसं सारवंतं च हेउजुत्तमलंकियं । उवणीयं सोवयारं च मियं महुरमेव च ॥” (२) सारवान् - सारयुक्त | (३) हेतुयुक्त - अन्वय और व्यतिरेक हेतुओ से युक्त । (४) अलंकारयुक्त - उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलकारो से विभूषित । (५) उपनीत - उपनय से युक्त अर्थात् दृष्टान्त को दान्तिक मे घटित करने वाला । (६) सोपचार - भाषा के सौष्ठव व सौन्दर्य से युक्त । (७) मित- थोडे अक्षरो मे अधिक भावयुक्त । (८) मधुर - सुनने मे मनोहर और मधुर वर्णो से युक्त । अनधिगतार्थ की बोध विधि - सूत्र के उच्चारण करने पर भी अनधिगत- अप्राप्त अर्थ के अर्थाधिकारों का परिज्ञान कराने की व्याख्या विधि इस प्रकार है (१) संहिता - अस्खलित रूप से पदो का उच्चारण करना । (२) पद - एक - एक पद का निरूपण करना । अनुगमद्वार Jain Education International (467) Anugam Dvar (Approach of Interpretation) For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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