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________________ (१९) कितने काल तक-सामायिक रह सकती है? अर्थात् सामायिक का कालमान कितना है? सम्यक्त्व और श्रुत-सामायिक की उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक छियासठ सागरोपम और चारित्र-सामायिक की देशोन पूर्वकोटि वर्ष की तथा जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। (२०) कति-सामायिक के प्रतिपत्ता-प्राप्त करने वाले कितने होते हैं ? ___ सम्यक्त्व-सामायिक व देशविरति-सामायिक के प्रतिपत्ता एक काल में, उत्कृष्टतः क्षेत्र पल्योपम के असंख्येय भाग मे जितने आकाश-प्रदेश होते हैं, उतने होते हैं। देशविरत-सामायिक के प्रतिपत्ता से सम्यक्त्व-सामायिक के प्रतिपत्ता असंख्येय गुण अधिक होते हैं, जघन्यतः एक अथवा दो प्रतिपत्ता उपलब्ध होते है। श्रुत-सामायिक के प्रतिपत्ता श्रेणी के असंख्यातवें भाग में जितने आकाश-प्रदेश होते है उत्कृष्टतः उतने होते हैं। जघन्यतः एक अथवा दो होते हैं। सर्वविरति के प्रतिपत्ता उत्कृष्टतः सहस्रपृथक् (दो से नौ हजार) तथा जघन्यतः एक अथवा दो होते हैं। विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य विशेषावश्यकभाष्य गाथा, २७६४ से २७७४। (२१) अन्तर-सामायिक का अन्तर (विरह) काल (पुनः प्राप्ति में व्यवधान) कितना होता है ? सामान्य श्रुत-सामायिक में जघन्य अन्तर्मुहूर्त का और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल का है। एक जीव की अपेक्षा सम्यक् श्रुत, देशविरति, सर्वविरतिरूप सामायिक का अन्तरकाल जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन अर्धपुद्गलपरावर्तकालरूप है। (२२) निरन्तरकाल-बिना अन्तर के लगातार कितने काल तक सामायिक सम्यक्त्व-सामायिक ग्रहण करने वाले होते हैं ? सम्यक्त्व और श्रुत-सामायिक के प्रतिपत्ता अगारी (गृहस्थ) निरन्तर उत्कृष्टतः आवलिका के असंख्यातवें भाग काल तक होते हैं और चारित्र-सामायिक वाले आठ समय तक होते है। जघन्यतः समस्त सामायिकों के प्रतिपत्ता दो समय तक निरन्तर बने रहते हैं। (२३) भव-कितने भव तक सामायिक रह सकती है? पल्य के असंख्यातवें भाग तक सम्यक्त्व और देशविरति-सामायिक, आठ भव पर्यन्त चारित्र-सामायिक और अनन्तकाल तक श्रुत-सामायिक होती है। (२४) आकर्ष-सामायिक के आकर्ष (उपलब्धि) एक भव में या अनेक भवों में सामायिक कितनी बार ग्रहण किया जा सकता है ? तीनो सामायिको (सम्यक्त्व, श्रुत और देशविरत-सामायिक) एक भव में उत्कृष्ट से सहस्रपृथक्त्व २ से ९ हजार बार तक और सर्वविरति के शतपृथक्त्व २०० से ९०० बार तक होते हैं। जघन्य से समस्त सामायिकों का आकर्ष एक भव मे एक ही होता है तथा अनेक भवों की अपेक्षा सम्यक्त्व व देशविरति-सामायिकों के उत्कृष्ट असंख्य सहस्रपृथक्त्व और सर्वविरति के सहस्रपृथक्त्व आकर्ष होते हैं। (२५) स्पर्श-सामायिक करने वाले कितने क्षेत्र का स्पर्श करते हैं ? सम्यक्त्व तथा सर्वविरति सामायिक वाले जीव उत्कृष्टतः समस्त लोकाकाश का स्पर्श करते हैं तथा जघन्यतः लोक के असंख्यातवें भाग का। शेष सामायिक वाले जीव तीन से चौदह रज्जु प्रमाण क्षेत्र का स्पर्श करते हैं। सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२ (460) Illustrated Anuyogadvar Sutra-2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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