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५५३. से किं तं भवियसरीरदव्यज्झीणे ?
भवियसरीरदव्यज्झीणे जे जीवे जोणीजम्मणनिखंते जहा दव्यज्झयणे, जाव से तं भवियसरीरदव्वज्झीणे। __५५३. (प्र.) भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण किसे कहते हैं ?
(उ.) समय पूर्ण होने पर जो जीव योनि से निकलकर उत्पन्न हुआ आदि पूर्वोक्त भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन के जैसा इस भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण का वर्णन जानना चाहिए, यावत् यह भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण की वक्तव्यता है।
553. (Q.) What is this Bhavya sharir dravya akshina (physicalakshina as body of the potential knower) ?
(Ans.) On maturity a being comes out of the womb or is born gh (and so on as mentioned in case of Dravya adhyayan).
This concludes the description of Bhavya sharir dravya akshina (physical-akshina as body of the potential knower). ___५५४. से किं तं जाणयसरीर-भवियसरीर-वइरित्ते दबझीणे ? ___जाणयसरीर-भवियसरीर-वइरित्ते दव्यज्झीणे सव्वागाससेढी। से तं
जाणयसरीर- भवियसरीर-वइरित्ते दवझीणे। से तं नोआगमओ दवज्झीणे। से तं दव्वज्झीणे।
५५४. (प्र.) ज्ञायकशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्य-अक्षीण का क्या स्वरूप है ? । (उ.) सर्वाकाश-श्रेणि ज्ञायकशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्य-अक्षीण रूप है।
यह नोआगम से द्रव्य--अक्षीण का वर्णन है और इसका वर्णन करने से द्रव्य-अक्षीण का कथन पूर्ण हुआ।
विवेचन-उपर्युक्त सूत्र ५४७ से ५५४ तक अक्षीण के नाम, स्थापना और द्रव्य इन तीन प्रकारो का वर्णन पूर्वोक्त अध्ययन के प्रसंग में आवश्यक का जैसा किया है, वही और वैसा ही वर्णन यहाँ आवश्यक के स्थान पर अक्षीण शब्द को रखकर कर लेना चाहिए, लेकिन इतना विशेष है कि ज्ञायकशरीरभव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्य-अक्षीण ‘सर्वाकाश श्रेणी' रूप है जिसका आशय इस प्रकार है___ सर्वाकाश का अर्थ है-लोकरूप एव अलोकरूप आकाश, इन दोनों की जो प्रदेशपक्ति है, वह सर्वाकाश श्रेणी है। इसमें से यदि प्रतिसमय मे एक-एक प्रदेश का भी अपहरण किया जाये तो भी अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल तक भी वह रिक्त नही हो सकती। इसलिए इसे (सर्वाकाश श्रेणी को) ज्ञशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्याक्षीणरूप बताया गया है। सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२
ans.ke.ke.ke.ske.sksksksksksksdiseakskoke.skssaksisakseaksiksak sis.ske.ke.skeke.sis.ke.sekaakirtan
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Illustrated Anuyogadvar Sutra-2
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